पहले कमल का फूल भगवान पर चढ़ता भी था एवं उसके पत्ते में भोजन परोसने के बाद उसका सुरक्षित निष्पादन भी हो जाता था किंतु आज उस पत्ते का स्थान प्लास्टिक अथवा फोम के पत्ते ने ले लिया है जो खाने वाले के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने के साथ साथ फेंकने के बाद प्रदूषण कारक है। पटना चिड़ियाघर की यात्रा के दौरान पटना के एक भाग में पानी से लबालब झील है जो नौकागमम्य है और यहां पर सैलानी आते हैं एवं बोटिंग का आनंद लेते हैं। इसी के दूसरे साइड में हरे हरे पत्तों के साथ कमल के फूल की लहलहाती फसल आपको दिख जाएगी। पहले मोतिहारी के मोती झील में भी कमल की खेती बृहद पैमाने पर होती थी एवं मोती झील की खूबसूरती में चार चांद लगाती थी लेकिन बढ़ते प्रदूषण के साथ साथ मोतीझील में कमल की खेती देखना नई पीढ़ी के लिए एक सपने जैसा है यही कारण है कि चिड़ियाघर में देखकर लोगों को संतुष्ट होना पड़ता है। चिड़ियाघर में जंगल के जानवरों के साथ साथ विलुप्त प्राय प्राणियों को भी रखा गया है और उस विलुप्त प्राय पौधों में कमल का फूल का पौधा भी एक है जो हमारे आसपास से आजकल विलुप्त हो चला है। पहले के जमाने में जब इतना प्लास्टिकीकरण
क्योंकि सच एक मुद्दा हैं