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Showing posts from August 10, 2018

मेरे गांव का राम कुआ

मेरे गांव का राम कुआ टूटे हुए ढाणे का यह बूढ़ा कुआ केवल एक कुआ ही नहीं था पूरे गांव के प्यासे कण्ठों पर मीठे सागर की लहरों का रोजनामचा था नदी के ढावै से थोड़ी दूर ठंडे और मीठे जल का सदाव्रत रामझारा था। चड़स की सूंड से निकल कर पतले धोरे में बहते  पानी को देख थके राहगीर की प्यास भी अधरों तक आ जाती थी। घेर घुमेर नीम की ठंडी छाया में टहनियों से बंधे लूगड़ी के झूले में पाणत करती कमली के बच्चे के पास आ कर बुलबुल ,कबूतरी ,कमेड़ी कभी गौरैया गीत सुनाती थी कभी कभी चड़स हांकता अपनी धुन में आ कर सौनन्दा  भी "पंछीड़ा"तान सुनाता था। और पाणत करती कमली का रूप देख कोई बगुला दीवाना कीड़े खाना भी भूल जाता था कभी फुदकती कोई गिलहरी कभी पानी में छपकी मारती कभी दौड़कर कुए के ढोलों पर चढ़ जाती कभी झूले की डोरी चढ़ कर नन्हे धरती पुत्र का गोरा मुख देख इतराती यह देख कुआ भी खिलखिला कर हंस देता था बनास की सरसाई से गदराया रहता था कुए का तन मन चारों ओर स्यारण में महकती रहती थी भूरी मिट्टी से पानी के मिलन की सौंधी गंध और दरख्त दरख्त पंछी गाते रहते थे वैभव के छंद किन्तु आज ! आज तो बस सुनाई देता है बूढ़े कुए की जर्जर सू

मेरे गांव का राम कुआ

मेरे गांव का राम कुआ टूटे हुए ढाणे का यह बूढ़ा कुआ केवल एक कुआ ही नहीं था पूरे गांव के प्यासे कण्ठों पर मीठे सागर की लहरों का रोजनामचा था नदी के ढावै से थोड़ी दूर ठंडे और मीठे जल का सदाव्रत रामझारा था। चड़स की सूंड से निकल कर पतले धोरे में बहते  पानी को देख थके राहगीर की प्यास भी अधरों तक आ जाती थी। घेर घुमेर नीम की ठंडी छाया में टहनियों से बंधे लूगड़ी के झूले में पाणत करती कमली के बच्चे के पास आ कर बुलबुल ,कबूतरी ,कमेड़ी कभी गौरैया गीत सुनाती थी कभी कभी चड़स हांकता अपनी धुन में आ कर सौनन्दा  भी "पंछीड़ा"तान सुनाता था। और पाणत करती कमली का रूप देख कोई बगुला दीवाना कीड़े खाना भी भूल जाता था कभी फुदकती कोई गिलहरी कभी पानी में छपकी मारती कभी दौड़कर कुए के ढोलों पर चढ़ जाती कभी झूले की डोरी चढ़ कर नन्हे धरती पुत्र का गोरा मुख देख इतराती यह देख कुआ भी खिलखिला कर हंस देता था बनास की सरसाई से गदराया रहता था कुए का तन मन चारों ओर स्यारण में महकती रहती थी भूरी मिट्टी से पानी के मिलन की सौंधी गंध और दरख्त दरख्त पंछी गाते रहते थे वैभव के छंद किन्तु आज !

तेरा आना ...तेरा जाना

NTC NEWS MEDIA /Motihari तेरा आना , जैसे सावन में रिमझिम बारिश । जैसे ठंडी में दोपहर की धूप जैसे गर्मी में शीतल छाया की सुकून जैसे पूरी हुई हो सदियों की ख्वाहिश तेरा आना जैसे बादलों के बीच से गुजरना । जैसे चांदनी रात में कही दूर हो अपना आशियां जैसे समुन्दर की लहरों के साथ हो आजमाईश। जैसे सारे दिल के अरमानो का फिर से खिल उठना । तेरा आना जैसे वो चंदन की महक जैसे वो ठंडी हवा का झोंका । जैसे वो धीमी धीमी सी गुलाबों की खुशबू जैसे सुबह सुबह कोयल की हो आवाज़ जैसे मीठी मीठी सी धुन पे छिड़ी हो सरगम साज। जैसे समुन्द्र में मिली हो मोती जैसे ऋषी की साधना , और तानसेेन का संगीत जैसे किसी डूबते को मिला हो ऑक्सीजन मरते मरते मिल गया हो नया जीवन। और जब वही इंसान जाता है, तो .... तेरा  जाना जैसे सपनों का टूट जाना। एहसासों का सुख जाना। ख़ुदा का रूठ जाना। अरमानों का लूट जाना । तेरा जाना जैसे सूखे हुए पत्ते, बिना सुगंध के फूल न जाने कौन सी हुई हमसे भूल । किसी गुनाह की होगी सजा जिसमे ऊपर वाले कि भी होगी रजा। तेरा जाना , जैसे बिन सावन के तरसता हो मोर यादों में आके कोई मचा रहा हो शोर अपने होने का दिखा रहा हो ज

तेरा आना ...तेरा जाना

NTC NEWS MEDIA /Motihari तेरा आना , जैसे सावन में रिमझिम बारिश । जैसे ठंडी में दोपहर की धूप जैसे गर्मी में शीतल छाया की सुकून जैसे पूरी हुई हो सदियों की ख्वाहिश तेरा आना जैसे बादलों के बीच से गुजरना । जैसे चांदनी रात में कही दूर हो अपना आशियां जैसे समुन्दर की लहरों के साथ हो आजमाईश। जैसे सारे दिल के अरमानो का फिर से खिल उठना । तेरा आना जैसे वो चंदन की महक जैसे वो ठंडी हवा का झोंका । जैसे वो धीमी धीमी सी गुलाबों की खुशबू जैसे सुबह सुबह कोयल की हो आवाज़ जैसे मीठी मीठी सी धुन पे छिड़ी हो सरगम साज। जैसे समुन्द्र में मिली हो मोती जैसे ऋषी की साधना , और तानसेेन का संगीत जैसे किसी डूबते को मिला हो ऑक्सीजन मरते मरते मिल गया हो नया जीवन। और जब वही इंसान जाता है, तो .... तेरा  जाना जैसे सपनों का टूट जाना। एहसासों का सुख जाना। ख़ुदा का रूठ जाना। अरमानों का लूट जाना । तेरा जाना जैसे सूखे हुए पत्ते, बिना सुगंध के फूल न जाने कौन सी हुई हमसे भूल । किसी गुनाह की होगी सजा जिसमे ऊपर वाले कि भी होगी रजा। तेरा जाना , जैसे बिन सावन के तरसता हो मोर यादों में आके कोई मचा र