बस स्टैंड के बाहर एक अंगूठी बेचने वाला जोर जोर से चिल्ला रहा था। काले घोड़े की नाल की चमत्कारी अंगूठी ले लो .......कीमत केवल दस रूपये अंगूठी, बेचने वाला का दावा साथ बोल रहा था, अंगूठी पहनते ही सब समस्या दूर,गृहक्लेश दूर,नौकरी मिल जाएगी, व्यापार चमक जाएगा, हर इम्तेहान में पास हो जाओगे, हाईस्कूल में टॉप करोगे। मुझे अंगूठी बेचने वाले की नादानी और उसकी हालत पर दया आ रही थी, और उससे भी ज्यादा दया आ रही थी अगुंठीयों के खरीददारों पर जो भीड़ लगाए हुए उस अंगूठी बेचने वाले के इर्द-गिर्द खड़े हुए थे। मेरे मन का ही यक्ष मुझ युधिष्ठिर से प्रश्न कर रहा था कि आखिर लोग सत्य के नाम पर झूठ क्यों बेचते हैं....??? घोड़े की नाल अगर इतनी ही चमत्कारी होती तो सबसे पहले उस काले घोड़े की किस्मत चमकती। उसे रोज रोज दाएं बाएं चलने, सही से खड़े रहने अथवा भीषण गर्मी में प्यास से तिलमिलाते हुए माल ढोने के लिए मालिक के चाबुक की मार न खानी पड़ती। और तो और यह चमत्कारी घोड़ा और चमत्कारी घोड़े की नाल की गठरी जिस व्यापारी के पास होगा, कम से कम वह रोड पर दुकान तो नहीं लगा रहा होता। सच में कहूं तो यहां पर ख्वाब बेचे
क्योंकि सच एक मुद्दा हैं