जग के बडे़ रजबाडे़, क्या राखेंगे मान, जैसा कि संत अखाडे़, वैभव करत प्रदान। वैभव करत प्रदान, धार्मिक निष्ठा लाके , कर अनुभव संप्रीति, बिषमता हिय की ढाके, कहत 'भ्रमर' कविराय, भाव आये नहिं आड़े, चाहे जितने रूप, धरें जग के रजवाड़े।। विजय नारायण अग्रवाल 'भ्रमर' रायबरेली 22 जनवरी 2019
क्योंकि सच एक मुद्दा हैं