बतख मियां के गांधी ! महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह के सौ साल पूरे होने पर बापू अभी चर्चा में हैं। मैं थोड़ी सी चर्चा उस शख्स की करना चाहता हूं जो अगर न होता तो न गांधी नहीं होते और न भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास वैसा होता जैसा हम जानते हैं। वे शख्स थे चंपारण के ही बतख मियां। बात 1917 की है जब दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद चंपारण के किसान और स्वतंत्रता सेनानी राजकुमार शुक्ल के आमंत्रण पर गांधी डॉ राजेन्द्र प्रसाद तथा अन्य लोगों के साथ अंग्रेजों के हाथों नीलहे किसानों की दुर्दशा का ज़ायज़ा लेने चंपारण आए थे। चंपारण प्रवास के दौरान जनता का अपार समर्थन उन्हें मिलने लगा था। लोगों के आंदोलित होने से जिले में विधि-व्यवस्था की समस्या उत्पन्न होने की आशंका थी। वार्ता के उद्देश्य से नील के खेतों के तत्कालीन अंग्रेज मैनेजर इरविन ने मोतिहारी में उन्हें रात्रिभोज पर आमंत्रित किया। तब बतख मियां इरविन के रसोईया हुआ करते थे। इरविन ने गांधी की हत्या के लिए बतख मियां को जहर मिला दूध का गिलास देने का आदेश दिया। निलहे किसानों की दुर्दशा से व्यथित बतख मियां बतख मियां को गांधी में उम्मीद की किरण नज़
क्योंकि सच एक मुद्दा हैं