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कैसे फकीर हो पान का पिक इधर-उधर फेंकते हो.... और फिर क्या हुआ...?

बाबा की बस एक हरकत मुझे पसंद नहीं आई और जब मैंने टोक दिया तो वह चेन्नई एक्सप्रेस की रफ्तार से आगे बढ़ने लगा.....  अब आगे पढ़िए क्या हुआ... एक बार ऐसे ही हमारे मोहल्ले में भी ऐसे बाबाओं का आना हुआ  सब के केसरिया और हरा वस्त्र पहने हुए  थे आंखों में सुरमा और सिर पर टोपी के साथ-साथ चादर तानकर आगे बढ़ते जा रहे थे। सबकी आजू बाजू में झोला टंगा था और उनमें से किसी एक के झोले में छोटा सा स्पीकर लगा था जिसमें गाना चल रहा था ख्वाजा ख्वाजा ख्वाजा ख्वाजा ख्वाजा ख्वाजा...... चुकी धार्मिक सहिष्णुता हम हिंदुओं में कूट-कूट कर भरी हुई है इसलिए माँ ने ₹10 दे दिया किंतु  बाबा की एक हरकत मुझे पसंद नहीं आई और  फिर क्या था मैंने बाबा को ठोक दिया तो वह बाबा चेन्नई एक्सप्रेस की रफ्तार से आगे बढ़ते हुए हमारे गली से रफूचक्कर हो गया। हुआ यूं कि सुबह सुबह का वक्त था गर्मी से बेहाल जिंदगी दरवाजे के बाहर अखबार के सहारे कट रही थी इसी बीच एक गिलास पानी के साथ चाय की चुस्की  रात की गर्मी के साथ साथ मानसिक उलझनों से दूर एक अलग ही वातावरण में ले जा रही थी तभी मोहल्ले के सुदूर गली के मोड़ से मंद मंद सी आवाज आन