Skip to main content

Posts

Showing posts from January 6, 2018

...... मज़हबीकरण

घंटो बैठे , निहारते रहता हूँ। समाज से समाज को,  पुकारते रहता  हूँ।  अपने संसार का , वह सामाजिक ताना-बाना।  सभी क्यों गाने लगे है , क्रूर  कट्टरता का गाना।  कहाँ गई ईद की , वह सेवई की मिठास।  अब होली के पुए में भी , आने लगी है खटास।  अब कहाँ  कोई हिन्दू , मस्जिद के बहार नजर आता हैं।  इस कदर उसे , संदेह से देखा जाता हैं।  घर वापसी की ख़बर सुनकर , कमला बेगम सिहर सी जाती है।  जबरन मजहबीकरण की , उसकी अतीत ताजी हो जाती है।  अब बंटवारा होगा लहू का , भाईचारे का भी हरण होगा।  मिटटी, पानी और हवा का , मज़हबीकरण होगा।  धन्यवाद  कवि:-नकुल कुमार मोतिहारी, पूर्वी चम्पारण बिहार  Mb. 08083686563