रात की गहराई में, मुझे बुलाया करतीे हो । खुद ऑफलाइन होकर, गहरी नींद में सो जातीे हो। जब इतना ही तड़पाना था, तो क्या मैसेज सिर्फ बहाना था, यह कैसी हमदर्दी थी, यह कैसा हो जाना था...? मुझे जगाकर अरे ओ प्रीतम, जब खुद ही सो जाना था।। यू तीव्रनिद्रा में जाकर, जाने कहां खो जातीे हो। मैं मारा मारा फिरता हूं, फिर भी तुम नहीं आती हो।। जाने कहां रह जातीे हो, जाने कहां खो जातीे हो।। मैं प्रेमनगर से आया हूं, कुछ संदेशा लाया हूं।। कभी अपने सपनों की दुनियां में, मुझको भी बुलाओ ना। क्यों अकेले तड़पती हो, अब मेरे संग रास रचाओ ना।।
क्योंकि सच एक मुद्दा हैं