Skip to main content

Posts

Showing posts from April 20, 2018

रात की गहराई में.........भाग-02

रात की गहराई में, मुझे बुलाया करतीे हो । खुद ऑफलाइन होकर, गहरी नींद में सो जातीे हो। जब इतना ही तड़पाना था, तो क्या मैसेज सिर्फ बहाना था, यह कैसी हमदर्दी थी, यह कैसा हो जाना था...? मुझे जगाकर अरे ओ प्रीतम, जब खुद ही सो जाना था।। यू तीव्रनिद्रा में जाकर, जाने कहां खो जातीे हो। मैं मारा मारा फिरता हूं, फिर भी तुम नहीं आती हो।। जाने कहां रह जातीे हो, जाने कहां खो जातीे हो।। मैं प्रेमनगर से आया हूं, कुछ संदेशा लाया हूं।। कभी अपने सपनों की दुनियां में, मुझको भी बुलाओ ना। क्यों अकेले तड़पती हो, अब मेरे संग रास रचाओ ना।।

रात की गहराई में........भाग-01

यह रात बहुत ही गहरा है इस पर कहां किसी का पहरा है आप शब्दों से रात को झूठलाते हो, देखो कभी इसकी गहराई में , इसके सिर  भी एक सेहरा है मोहब्बत की तन्हाई में , अंधेरे को यह पीता है दिन भर अकेला ये, तन्हा तन्हा जीता है यह रात बहुत ही गहरा है इस पर कहां किसी का पहरा है रात रात भर तीतर कलरव करते रहते हैं एक दूसरे से मिलने को तड़पते रहते हैं नदी भी कल कल करती है समंदर की ओर दौड़ती है एक बिस्तर पर दो जोड़े एक दूसरे में मिट जाते हैं सन्नाटे को चीरकर हर आह को पी जाते हैं। यह रात बहुत ही गहरा है इसपर कहां किसी का पहरा है मेरे शब्दों पर ना गौर करो तनहाई में जग कर ना भोर करो मेरे शब्द जो तुम को आहत करते हैं कहीं जो तू रूठ ना जाओ, बस इसी भाव से डरते हैं अब ज्यादा ना इंतजार करो यूं मुझे ना बेकरार करो इस रात का श्रृंगार करो यह रात बहुत ही गहरा है इस पर कहां किसी के पहरा है