🌴🌴🌴🌴🌴 🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴 🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌏🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴 पूर्णरूप से भयरहित क्या और क्यों ? भोगे रोगभयं कुले च्युतिभयं वित्ते नृपालाद्भयं मौने दैन्यभयं बले रिपुभयं रूपे जराया भयम्। शास्त्रे वादभयं गुणे खलभयं काये कृतान्ताद्भयं सर्वं वस्तु भयान्वितं भुवि नृणां वैराग्यमेवाभयम्।। ‘भोगविलास में रोगादि उत्पन्न होने का, सत्कुल में वंश-परम्परा टूटने का, द्रव्य (धन-सम्पदा) में राजा का, मौन-धारण में दीनता का, पराक्रम में शत्रु का, सुंदरता में जरा (बुढ़ापा) का, शास्त्र में विवाद का, गुण में दुर्जन का और काया में मृत्यु का भय सर्वदा बना रहता है। इसलिए इस पृथ्वीतर पर और सब पदार्थ तो भययुक्त हैं परंतु एक वैराग्य ही ऐसा है कि जो सब प्रकार के भयों से सर्वथा मुक्त है।’ वैराग्य शतकः31 यदि मनुष्य विष्य-सुखों को भोगता है तो उसे रोगों का भय सताता रहता है। यदि चंदन आदि शीतल पदार्थों का बारम्बार या अधिक लेपन किया जाता है तो बादी (वायु) हो जाती है। यदि व्यक्ति का उच्च कुल में जन्म होता है तो सदा उसके पतन या उसमें कोई दोष होने का डर लगा रहता है। कुल में किसी के भी दुराचारी होने ...
क्योंकि सच एक मुद्दा हैं