--: ब्रह्मान्ड दर्शन:-- सम् भावों को देने वाला, एक छत्र (आकाश) है। त्याग मूरती (धरती) माता, पूरन करती आस है।। 1 यदि नव मन की अंत:किरणें, यज्ञवेदि दिग्पाल दे, प्रश्न नही है कोई आकर, भौतिकता को चाल दे, (पवन) सृष्टि रंग भरने वाला, आत्म ज्योति उल्लास है----- 2 कारण जाकर तुम खुद पूछो , पुलकित सृजन सहेली से, शशि ग्रहअगनित नमन सितारे, खोई हुयी पहेली से, रसमय सुन्दर शोणित यौवन, (अग्नि)मयी विश्वास है----- 3 जी की तृष्णा अश्रु भिगोई, जगह जगह पर दिखती है, शुचिता उसकी कलुषित एैसी , ...
क्योंकि सच एक मुद्दा हैं