दिल्ली। दिल्ली के नेताओं और अफसरों को आशंका थी कि ईद के दिन कश्मीर में घमासान मचेगा। यह आशंका 14 और 15 अगस्त के लिए भी बनी हुई है लेकिन यह लेख लिखे जाने तक कश्मीर से कोई भी अप्रिय खबर नहीं आई है। मैं प्रायः टेलिविजन नहीं देख पाता हूं लेकिन आज घनघोर व्यस्तता के बावजूद दिन में चार-छह बार उसे देखा, क्योंकि मुझे भी शंका थी कि कश्मीर में कुछ भी हो सकता है, हालांकि तीन दिन पहले मैंने लिखा था कि हमारे कश्मीरी भाई-बहनों को यह ईद एतिहासिक शैली में मनानी चाहिए, क्योंकि 5 अगस्त को उनकी फर्जी हैसियत खत्म हुई है और अन्य भारतीयों की तरह उन्हें सच्ची आजादी मिली है। कश्मीर के आम लोग तो बहुत शालीन, सुसंस्कृत और शांतिप्रिय हैं लेकिन नेताओं और गुमराह आतंकियों की मजबूरी है कि वे लोगों को उकसाते हैं और हिंसा भड़काते हैं। लेकिन कितना गजब हुआ है कि आज पूरा कश्मीर खोल दिया गया है, हजारों लोग मस्जिदों में जाकर नमाज़ पढ़ रहे हैं और बाजारों में खरीदी कर रहे हैं किंतु कहीं से कोई तोड़-फोड़ या मार-पीट की खबर नहीं आई है, हो सकता है कि ऐसा प्रेस, फोन, टेलिविजन आदि पर लगे प्रतिबंधों के कारण हो रहा है। व
क्योंकि सच एक मुद्दा हैं