मेरे गांव का राम कुआ
टूटे हुए ढाणे का यह
बूढ़ा कुआ
केवल एक कुआ ही नहीं था
पूरे गांव के
प्यासे कण्ठों पर
मीठे सागर की लहरों का रोजनामचा था
नदी के ढावै से
थोड़ी दूर
ठंडे और मीठे जल का सदाव्रत रामझारा था।
चड़स की सूंड से निकल कर
पतले धोरे में बहते पानी को देख
थके राहगीर की प्यास भी अधरों तक
आ जाती थी।
घेर घुमेर नीम की ठंडी छाया में
टहनियों
से बंधे लूगड़ी के झूले में
पाणत करती कमली के बच्चे के पास
आ कर
बुलबुल ,कबूतरी ,कमेड़ी कभी गौरैया
गीत सुनाती थी
कभी कभी चड़स हांकता
अपनी धुन में आ कर
सौनन्दा भी "पंछीड़ा"तान सुनाता था।
और
पाणत करती कमली का रूप देख
कोई बगुला दीवाना
कीड़े खाना भी भूल जाता था
कभी फुदकती कोई गिलहरी
कभी पानी में छपकी मारती कभी दौड़कर
कुए के ढोलों पर चढ़ जाती
कभी झूले की डोरी
चढ़ कर नन्हे धरती पुत्र का
गोरा मुख देख इतराती
यह देख कुआ भी खिलखिला कर
हंस देता था
बनास की सरसाई से गदराया रहता था
कुए का तन मन
चारों ओर स्यारण में महकती रहती थी
भूरी मिट्टी से पानी के मिलन की सौंधी गंध
और
दरख्त दरख्त पंछी गाते रहते थे वैभव के छंद
किन्तु आज !
आज तो बस सुनाई देता है बूढ़े कुए की
जर्जर सूखी काया में उपेक्षाओं
का आर्तनाद
और उसके खण्डहर हुए ढोले
देख रहे है
अपनी ही आंखों के सामने
अपनी जीवन रेखा बनास की
बजरी को
ट्रोलियों की बैकुंठी
लेखक
**ब्रजराज स्नेही**
एक प्रासांगिक प्रसंग :-
"मेरा गांव छोटी जन्नत की बस्ती " कविता पर टिप्पणी करते हुए मेरे ही गांव के मित्र रामलाल चौधरी ने लिखा था कि "आपने पुरानी अयोध्या की याद दिला दी" तब तो इस कथन पर सरसरी तौर पर ही ध्यान गया, किन्तु "मेरे गांव का राम कुआ" कविता की लेखन यात्रा में उनकी बात सटीक लगी ,क्योंकि जहां राम कुआ स्थित है उसके आस पास के क्षेत्र को लोक भाषा में "स्यारण" कहते है जिसका तत्सम रूप सियारण्य (सिया+अरण्य) अर्थात सीता वन होता है। डोडवाड़ी अति प्राचीन गांव है क्योंकि प्राचीन गांव या नगर आवश्यक रूप से नदी किनारे ही बसते थे। हालाकि विक्रम संवत 2001 के आसपास आई बाढ ने इसकी प्राचीनता के सारे अवशेष नष्ट कर दिये जिसमें नदी के बीचों बीच सदाशिव जी की छतरी,भगवान जगन्नाथ का मठ और विपदा हरण बालाजी का मन्दिर ।बालाजी का मन्दिर तो अभी भी उसी जगह है किन्तु उसकी प्राचीनता का बखान करते टनों वजन के विशाल शिला खण्ड ,पीपल नीचे बहुत ऊंचा शिला खण्डो का शिव चबूतरा ,आठ फुट ऊंचाई का दो हजार वर्ग फुट का विशाल चबूतरा था जो जीर्णोद्धार की भेंट चढ गया ।ये सारे दृश्य और इसके नजदीक "लांक "नाम से खेड़ा सभ्यता के गांव के पास "राम भाटा "होना इतिहास की अन्धेरी गली में बार बार मेरे चिन्तन को ले जाता है और मेरी आंखों में प्रतीकात्मक अयोध्या का अक्स उभरने लगता है जिसके पीछे कई ऐतिहासिक कहानियां या प्रसंग हो सकते है यह सब शोध का विषय है पर मेरी कोशिश रहेगी कि इस छोटे से
गांव की आंचलिकता ,रहन सहन ,जीवन शैली और इतिहास के बहाने गावों के दुख सुख व अभाव भी फेसबुक या किताब के माध्यम से दुनिया के सामने लाऊँ। मैं कितना सफल हो पाऊँगा यह तो समय ही बता पायेगा ।
बस मेरा तो एक प्रयास है।
धन्यवाद।
**ब्रजराज स्नेही**
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