छत्तीसगढ़। इस देश में हर वर्ग के हिसाब से हर इंसान की हैसियत के हिसाब से और हर इंसान की चॉइस के हिसाब से हर किसी का अपना एक डॉक्टर होता है।उच्च श्रेणी के उच्च वर्ग वाले लोगों के फैमिली डॉक्टर होते हैं। मध्यमवर्ग वालों के लिए चैरिटेबल, सरकारी या थोड़े से सस्ते वाले डॉक्टर होते हैं। गांव में पाए जाने वाले कंधे पर झोला टांग कर घूमने वाले भी देशी डॉक्टर होते हैं।
जो किसी डॉक्टर के पास इंजेक्शन लगाने गोलियां दवाइयां देने का काम सीख कर गांव वालों की सेवाएं करते हैं। अब गांव वालों के लिए तो वह भी भगवान से कम नहीं है, जो मौके पर उनके कष्ट का निवारण कर उन्हें दर्द से निजात दिलवा देते हैं।
साईकल पर गली में खड़े खड़े ही मरीजों की ओ पी डी से लेकर एम आर आई तक करने वाले गांव के डॉक्टर जब किसी मरीज को देखते हैं, तो मरीज उन से तरह-तरह के सवाल और अपने दर्द के बारे में तलब करते हैं। सिर में दर्द है,पीठ में दर्द है,कमर में दर्द है यह दवाई ले लो। क्या इससे काम चल जाएगा....? चिंता मत करो सारी बिमारीयों काम तमाम करेगी। इस तरह से बिना बेड पर लेटा कर इलाज कर देने वाले, मौके पर काम आने वाले इन झोला टांगकर घूमने वाले डॉक्टरों को भी चिकित्सक दिवस पर नमन रहेगा।
मेरे मामा के गांव में एक झोलाछाप डॉक्टर था मुझे बुखार के कारण उसके पास जाना पड़ा ,मैंने उनसे जाकर चेकअप करवाया, उन्होंने कहा मैं इंजेक्शन लगाऊंगा...... मैंने कहा चलो लगा दीजिए, उन्होंने कहा कि मैं ऐसा इंजेक्शन लगाता हूं, कि तुम्हें दर्द तो दूर की बात है तुम्हे एहसास भी नहीं होगा....... कि मैंने तुम्हें इंजेक्शन लगा दिया है।............ ,मैंने कहा लगा दीजिए मैं भी देख लेता हूँ आप की कलाकारी ,उन्होंने इंजेक्शन लगाया, लगाकर बोले दर्द हुआ....?
मुझे भी अहसास ही नहीं हुआ कि मुझे उस डॉक्टर ने इंजेक्शन लगा दिया मन ही मन सोच रहा था बड़ा कमाल काट रहा यार इंजेक्शन भी लगा देता है और पता भी नहीं लगने देता।
मैंने कहा नहीं मैं आपकी फीस कितनी हुई.... ? उन्होंने कहा ₹30 । मैंने पर्स खोला इंजेक्शन की दवाई मेरे बटुए में मिली, दर्द कहां से होना था डॉक्टर साहब ने इंजेक्शन मुझे ना लगाकर मेरे पर्स को लगा दिया। मुफलिसी के दिनों में ₹50 के बटुए में सुई से छेद कर दिया। मैंने कहा आप महान हो ऐसी डिग्री आपने कहां से प्राप्त की?
तब उस महान झौलाछाप डाक्टर ने खुद के बारे मे मजाक मजाक में क्या खूब कहा,
"हमारी शख्शियत का अंदाज़ा तुम क्या लगाओगे ग़ालिब जब गुज़रते है क़ब्रिस्तान से तो मुर्दे भी उठ के पूछ लेते हैं कि डाॅक्टर साहब अब तो बता दो मुझे तकलीफ क्या थी" आज भी उन डॉक्टर महोदय का सामना होता है तो दंडवत प्रणाम करके निकलता हूं।
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