#अयोध्या_नगरिया_के_पतली_डगरिया ।
#चले_राम_रघुवरियाँ_हे_धीरे_धीरे।।
#चले_राम_रघुवरियाँ_हे_धीरे_धीरे।।
दुनिया में अब तक कोई ऐसा बेटा पैदा नहीं हुआ, जो स्वयं का राज्याभिषेक छोड़कर 14 बरस का बनवास स्वीकार करें। हमने किताबों में पढ़ा है बहुत सारे राजाओं एवं बाबर के बच्चों ने सिर्फ सिंहासन के लिए अपने बाप को कैद भी किया मरवा भी दिया है लेकिन राम दुनिया के पहले ऐसे पुत्र हुए जिन्होंने अपने पिता की जुबान की मर्यादा रखने के लिए 14 बरस का बनवास स्वीकार किया।
राम उस स्थिति में और भी प्रासंगिक हो जाते हैं जब उनकी मझली मां कैकई, जिसके कारण उनको बनवास जाना पड़ा, उनका भी अनादर नहीं करते हैं । इतना ही नहीं कैकई द्वारा वरदान मांगने राजा दशरथ द्वारा उन्हें प्रवास जाने की सारी घटना घटने के बावजूद वनवास जाते समय राम उनको भी मां करके बुलाते हैं। अगर कोई माता कैकई को डांटता है, भला बुरा कहता है, तो राम उसे समझाते हैं ।।
कितना विहंगम दृश्य है..... राजा दशरथ पुत्र वियोग में तड़प रहे हैं। माता केकैई राम को वनवास जाने के लिए प्रेरित कर रहीं है। माता कौशल्या अपने जिगर के लाल का यह हश्र होते हुए देख कर तड़प रही है, ऐसा लग रहा है मानो उसका कलेजा फट जाएगा। अयोध्या की जनता राम के पक्ष में है, और राजा दशरथ के खिलाफ विद्रोह करने को तैयार है ।लक्ष्मण क्रोधित है। वह अपने भाई को वनवास जाते हुए नहीं देख सकते हैं। सारी स्थितियां राम के पक्ष में है।
राम चाहते तो क्षण भर में सत्ता पर कब्जा करके राजा बन जाते । वे चाहते तो अयोध्या की सत्ता पर कब्जा कर सकते थे । अपने शत्रुओं को दीवाल में चुनवा सकते थे। उनकी हत्या करवा सकते थे। उन्हें रामराज्य ही अच्छा लगे यह कबूल करवा सकते थे। माता केकई को भी सजा दे सकते थे । उन्हें जेल खाने में रखवा सकते थे । राज्याभिषेक छोड़कर वन जाने की आज्ञा देने वाले पिता को भी जेल में कैद करवा सकते थे ।किंतु राम ने ऐसा नहीं किया। और यही स्थिति राम को सामान्य से असामान्य, दैवीय गुणों से युक्त पुरुष से परमेश्वर की तरफ ले जाती है। जिसका एहसास हम सभी को है।
यहां तक कि राम वनवास जाते समय नादान नाराज ना सिंहासन ना सोना ना चांदी ना सेना नहीं वो कि किसी सामग्री को स्वीकार करते हैं बल्कि बनवासी वेश धारण करके जंगल की तरफ प्रस्थान कर देते है। रास्ते में पढ़ने वाले नात नदियां पहाड़ जंगल इन सब के विषय में उनके गुणों के विषय में उनके दोष के विषय में अपनी पत्नी सीता को प्यारे भाई लक्ष्मण को बताते चलते हैं एवं मनुष्यों से दूर अपना 14 वर्ष बिताने के लिए घनघोर दंडकारण्य वन में प्रवेश करते हैं।
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