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दादी ने अपने पौत्रवधू को मुँह दिखाई में दी आम का पौधा,बना रहा चर्चा का विषय।

""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""" बिहार के समस्तीपुर जिलान्तर्गत खानपुर प्रखंड की बछौली की 90 वर्ष की बुजुर्ग महिला रेखा देवी ने अपने नव पौत्रवधू को मुँह दिखाई में पर्यावरण संरक्षण व संवर्धन के लिए  आम का पौधा उपहार में दिया। बताते चलें राजेश कुमार सुमन के द्वारा चलाये जा रहे पर्यावरण संरक्षण व संवर्धन के लिए "Selfie with tree"  अभियान से प्रभावित होकर उन्होंने ऐसा कदम उठाया।दादी के द्वारा पर्यावरण संरक्षण के लिए ऐसा कदम उठाये जाने से यह बात गांव ही नही पूरे जिले में चर्चा का विषय बना हुआ है।गौरतलब हो कि गांव के समाजसेवी श्री राम नरेश महतो के द्वितीय पुत्र बबलू की शादी हसनपुर प्रखंड के चन्दरपुर की रहने वाली निशा के साथ 7 मई 2018 को सम्पन्न हुआ।पौत्रवधू को ससुरा

Motihari me CPIM Rally

रात की गहराई में...... भाग-3

बड़ी दूर दूर से रहते हो, मुझसे कुछ नहीं कहते हो। छोटे से शब्द से, मुझे उत्तेजित कर जाते हो, कहो ना अरे ओ प्रीतम, तुम कैसे रह पाते हो ।। रात रात भर जगकर, मैसेंजर निहारा करता हूं , तुम्हें ऑफलाइन देखकर, बस तुम्हें पुकारा करता हूं।। एक आस कभी दे जाते हो, निराश भी कर जाते हो। कभी बातें करते हो, कभी बातें बनाते हो। और फिर निशब्द से हो जाते हो, अरे ओ प्रीतम बता दो ना, तन्हा कैसे रह पाते हो।। 💐तुम्हारा💐 नकुल कुमार NTC CLUB MEDIA "क्योंकि सच एक मुद्दा है"

सुनील कविराज की कलम से .....

सोने का जूगनू  (दास्ताॅ -ए-दिसंबर) कविता उस दिसम्बर को कैसे भूल जाऊँ जिसने मुझे सोने का जूगनू बनाया था । धीरे धीरे बढ़ी दिल लगी जो एक एहसास अनमोल दे दिया था । मुरझाई सी कली को पानी कि बुंद खिला कर सुन्दर फुल बना दिया था । उस सुनहरे पलो को कैसे भूल जाऊँ जिस पल ने मुझे जिंदा किया था । देखा न जिसको कभी मैंने विश्वास बहुत ही करने लगा था । मेरे काम को सफल करने के लिए मंदिर मे पूजा करना रोजाना था । खुली छूल्फो को दिखना और आँखों मे काजल लगाना था । उस आवाज को कैसे भूल जाऊँ जिसने जिने कि हिम्मत दिया था । उस चेहरे को कैसे भूल जाऊँ जिसे अपना आईना बनाना था । लफ्जो को चुरा कर हमेशा गुलाबों सी होठों पर सजाना था । सात जन्म साथ रहने का वादा उसे एक पल में भूल जाना था । शायद यही रब की मर्जी है प्यार करके प्यार को याद करना था ।

निकाली गई प्रभात फेरी

आयुष एसोसिएशन द्वारा आज सुबह मोतिहारी में प्रभात फेरी निकाली गई जिसका थीम था सत्याग्रह से शिक्षा ग्रहण किया इस रैली में मोतिहारी के गणमान्य लोगों ने लोगों ने हिस्सा लिया इस रैली के माध्यम से मोतिहारी में जनमानस के बीच जागरूकता फैलाई गई कि जिस तरह से हमने सत्याग्रह अपनाकर अंग्रेजी साम्राज्य को समाप्त किया उसी प्रकार से हमें सत्याग्रह अपनाकर कूड़ा कचरा और गंदगी से अपने शहर को बचाना है वह स्वच्छता के संकल्प को दोहराना है इसके साथ ही साथ बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ की झांकी भी प्रस्तुत की गई इस रैली में मोतिहारी के विभिन्न क्षेत्रों से आए हुए नेता बुद्धिजीवी शामिल हुए साथ ही साथ इस प्रभात फेरी में घोड़े हाथी आदित्य जी द्वारा मोतिहारी की जनता को स्वच्छता व शिक्षा का संदेश देने की भरपूर कोशिश की गई उसके बाद यह रैली मोतिहारी की गांधी संग्रहालय में जाकर समाप्त हुई गांधी संग्रहालय मोतिहारी पूर्वी चंपारण से नकुल कुमार

रात की गहराई में.........भाग-02

रात की गहराई में, मुझे बुलाया करतीे हो । खुद ऑफलाइन होकर, गहरी नींद में सो जातीे हो। जब इतना ही तड़पाना था, तो क्या मैसेज सिर्फ बहाना था, यह कैसी हमदर्दी थी, यह कैसा हो जाना था...? मुझे जगाकर अरे ओ प्रीतम, जब खुद ही सो जाना था।। यू तीव्रनिद्रा में जाकर, जाने कहां खो जातीे हो। मैं मारा मारा फिरता हूं, फिर भी तुम नहीं आती हो।। जाने कहां रह जातीे हो, जाने कहां खो जातीे हो।। मैं प्रेमनगर से आया हूं, कुछ संदेशा लाया हूं।। कभी अपने सपनों की दुनियां में, मुझको भी बुलाओ ना। क्यों अकेले तड़पती हो, अब मेरे संग रास रचाओ ना।।

रात की गहराई में........भाग-01

यह रात बहुत ही गहरा है इस पर कहां किसी का पहरा है आप शब्दों से रात को झूठलाते हो, देखो कभी इसकी गहराई में , इसके सिर  भी एक सेहरा है मोहब्बत की तन्हाई में , अंधेरे को यह पीता है दिन भर अकेला ये, तन्हा तन्हा जीता है यह रात बहुत ही गहरा है इस पर कहां किसी का पहरा है रात रात भर तीतर कलरव करते रहते हैं एक दूसरे से मिलने को तड़पते रहते हैं नदी भी कल कल करती है समंदर की ओर दौड़ती है एक बिस्तर पर दो जोड़े एक दूसरे में मिट जाते हैं सन्नाटे को चीरकर हर आह को पी जाते हैं। यह रात बहुत ही गहरा है इसपर कहां किसी का पहरा है मेरे शब्दों पर ना गौर करो तनहाई में जग कर ना भोर करो मेरे शब्द जो तुम को आहत करते हैं कहीं जो तू रूठ ना जाओ, बस इसी भाव से डरते हैं अब ज्यादा ना इंतजार करो यूं मुझे ना बेकरार करो इस रात का श्रृंगार करो यह रात बहुत ही गहरा है इस पर कहां किसी के पहरा है