Nakul Kumar के बचपन के अंग्रेजी के शिक्षक
Shree Arvind Shara sir
बचपन की यादें जितना जितनी सुहावनी होती है उतना शायद ही जीवन का कोई और दौर हो । कवियों से लेकर लेखकों तक सभी ने अपने गीतों में बचपन और उसके सुहावने दौर की व्याख्या अवश्य ही की है । बचपन हर दम से सुहाना होता है.........यह गीत कोई कैसे भूल सकता है ।
इतना ही नहीं ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह ने भी अपने गजलों में बचपन का सजीव चित्रण किया है जगजीत सिंह गाते हैं कि....
यह दौलत भी ले लो
यह शोहरत भी ले लो।
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी,
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन,
वो कागज की कश्ती वह बारिश का पानी।
हिंदी मीडियम के बच्चों के लिए अंग्रेजी सीखना और वह भी किसी के गाइडेंस में अपने आप में कागज की मिसाइल अंतरिक्ष में पहुंचाने जैसा है वैसे ही मैं छात्र था हिंदी मीडियम स्कूल का अंग्रेजी को तो सपने में भी नहीं चाहता था पर मरता क्या नहीं करता मास्टरजी जो कसम खा बैठे थे कि अंग्रेजी पढ़ा कर ही दम लेना है सो मास्टरजी अपना काम करते रहें और हम ना याद करने का अपना काम करते रहें।कक्षा में जाते रहें और छड़ी खाते रहें और फिर नॉर्मल हो जाते रहें
मन कृत संकल्पित की अंग्रेजी पढ़ना नहीं है अंग्रेजी हमारी भाषा है नहीं तो हम क्यों पढ़ें। अंग्रेजी से विलगाव हिंदी की तरफ और हिंदी साहित्य की तरफ और साहित्य मुझे पत्रकारिता की तरफ ले गई
किंतु दसवीं क्लास तक गुरु जी ने जो ज्ञान दिया उसी का प्रतिफल है कि आज थोड़ी बहुत अंग्रेजी जानते हैं अथवा बोल लेते हैं यह मास्टरजी का ही आशीर्वाद है।
कक्षा तीन में जब मैं था उस समय मास्टरजी हमारे स्कूल में पधारे थे और पहली पहली दफा हमें ट्रांसलेशन पढ़ाया था अंग्रेजी तो पहले से ही कितनी मजबूत थी, यह किसी से छुपा नहीं था मास्टरजी का डेमो क्लास था और इसी फर्स्ट क्लास में हम ठोके गए। हमारे और मास्टरजी की पहली मुलाकात कुछ इसी तरह से हुई थी उसके बाद तो मानो छड़ी और हमारे हाथ के बीच प्रेम ही हो गया था रोज रोज पिटाना और एक नए कृतसंकल्पित होकर आना।
शिक्षक दिवस कब वह दिन भूले नहीं भुलाता है जब हम लोगों ने एक सिनरी बनाकर भेंट की थी जिसमें की एक महिला का चित्र था और संयोगवश उन्हीं दिनों मास्टरजी की नई-नई शादी हुई थी और यही बात मास्टरजी के सभी मित्र शिक्षक बंधुओं के बीच हंसी मजाक का विषय बन गया था जिससे हम लोग इन सब कई दिनों तक अनभिज्ञ थे।
ntse में रीजनिंग और रिजनिंग में भी भर्बल रीजनिंग पहली पहली बार हमने मास्टरजी से ही पढ़ी थी क्या मस्त पढ़ाते थे । ब्लड रिलेशनशिप मुझे बहुत अच्छा लगता था जो आज भी मुझे समाज और सामाजिकता से जोड़े रखा है।
स्कूल छोड़ने के बाद जब कॉलेज लाइफ में हम लोग गए हैं सब बचपन की यादें सताने लगी जब कॉलेज लाइफ को पार किया तो वह यादें हमारे जीवन की संस्मरण सी बनकर रह गई।
बरसों बाद Facebook धन्यवाद का पात्र है जिसने ना सिर्फ हमारे क्लासमेट्स को हमसे मिलाया अपितु बचपन के तमाम यादें तमाम शिक्षक तमाम लोगों को जीवन वृतांत जीवन संस्मरण से इस प्रकार से जोड़ दिया जीवन की डोर में उन्हें मोतियों की भांति पिरोकर मानो सार्थक जीवन की माला तैयार कर दी।
6 महीना ही बीते होंगे हमारे और मास्टरजी के Facebook पर मिले हुए अपने स्वभाव की तरह बार-बार उन्हें मैसेज करता रहा लेकिन चुकी मास्टरजी जनेरवा स्कूल में प्रिंसिपल हैं, अतः अपनी अति व्यस्थता के कारण महीनों तक मेरा मैसेज पड़ा रहा । मास्टरजी मैसेज नहीं उठा पाए । महीनों बाद मास्टरजी से इनबॉक्स में मोटिवेशन मिलने लगा। ऐसा लगने लगा मानो बरसो से मुरझाई बगिया में फिर से हरियाली आ गई हो।
इसी क्रम में कल मोतिहारी के वी मार्ट में कुछ कपड़ा खरीदने गए हुए थे कि अचानक से मास्टरजी पर नजर पड़ी पुरानी सारी यादें मानो नजरों के सामने थी स्मृति आप को मजबूत हो चुकी थी एक काल्पनिक दुनिया से परे गुरु जी हमारे सामने थे और आज किसी भी प्रकार से अंग्रेजी सीखने का सिखाने का कोई भय नहीं था।
नकुल कुमार
📞8083686563
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