---:इष्ट प्रदत्त बोध किरण:---
# चञ्चल मन को वश में करने के लिए इस भौतिक शरीर को सत् कर्म द्वारा अर्जित संसारों का जामा पहनायें !
# मनुष्य के साथ इस लौकिक संसार से यदि कोई वस्तु जाती है तो वह केवल कर्म और संस्कार ही है!
# मनुष्य योनि को सफल बनाने के लिये संस्कार रूपी नाव में बैठकर कर्म रूपी पतवार का सहारा लें जोआपके काम-क्रोध-लोभ-मोह और मद
रूपी लहरों से बिना किसी बाधा के उस पार ले जाने में सहायक होगा और आप उस परमात्मा से मिल कर अनेंक योनि के
बन्धनों से मुक्त हो जायेंगे!
# विवेक शील मनुष्य ईश्वर से नाता जोड़ने का सरल मार्ग अपनाकर ही जीवन को जीने का बोध कराते हैं!
'भ्रमर'
अच्छे विचारों का आदान प्रदान जीवन को एक अलग आयाम देने में सहायक होता है ।तथा उससे मानसिक पूँजी बढ़ सकती है। ऐसा अनुभव की नीति प्रीति कहती है ।
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--:जीवन पथ:--
तेरे जलाये दीपक ,
आशा से जल रहे हैं ।
दे दो सहारा मुझको,
रिस्ते बदल रहे हैं ।।
हिरदय में बैठा अंकुर,
सपने में जी रहा है,
उष्मा मदन से पुष्पित,
सुष्मा को पी रहा है,
पथ के किनारे बचपन,
दरपन में फल रहा है,
विकसित सुमन का यौवन,
हाथों को मल रहा है,
सुख के सुनहरे बादल,
विश्वासी छल रहे हैं --तेरे--
वेदों का किया मंथन,
सागर सा सुख नमन में,
करमों की गति नियारी,
सन्तोष मुख पवन में,
दुरभावना में बैठा,
जहँ लौकिक कलेश है,
बचनों में तेरे सुन्दर,
वहँ गरिमा सन्देश है,
मिटते रहेंगे कलुषित,
जो पौधे फल रहे हैं---तेरे---
अन्त: करण में तेरे ,
बचनों ने जगह पाई,
पाकर भबिष्य उज्जवल,
जड़ चेतना में छाई,
तेरा ही रूप मन्डित ,
तेरी ही लालिमा है,
तुझसे ही तन की शोभा,
यौवन की मधुरिमा है,
बैभव-विभव-पराभव ,
पल पल सम्हल रहे है---तेरे--
अब तो सम्हालो कस्ती,
लहरों से जूझती है,
छाया गहन अन्धेरा,
तारों को ढूँढती है,
जीवन की आस धूमिल ,
तूफॉ के चढ़े पारे,
उबरेगी 'भ्रमर' नइया,
बस आपके उबारे,
कष्टों के इस समर में,
आंसू मचल रहे हैं---तेरे--
दे दो सहारा मुझको,
रिस्ते बदल रहे हैं ।।
नोट:--जीवन के चार पन का
मूल्यांकन करती गीतिका
रचयिता प्रेषक:--
विजय नारायण अग्रवाल 'भ्रमर'
रायबरेलवी 12 जुलाई 2018
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