Skip to main content

एक दिवसीय सत्संग.....

श्री आशारामायण पाठ (Shri Asharamayan Path)

Shri Asharamayan Path

गुरु चरण रज शीष धरि, हृदय रूप विचार ।
श्री आशारामायण कहौं, वेदांत को सार ।।
धर्म कामार्थ मोक्ष दे, रोग शोक संहार ।
भजे जो भक्ति भाव से, शीघ्र हो बेड़ा पार ।

भारत सिंधु नदी बखानी, नवाब जिले में गाँव बेराणी ।
रहते एक सेठ गुण खानि, नाम थाऊमल सिरुमलानी ।।
आज्ञा में रहती मंगीबा, पतिपरायण नाम मंगीबा ।
चैत वद छः* उन्नीस चौरानवे, आसुमल अवतरित आँगने ।।
माँ मन में उमड़ा सुख सागर, द्वार पै आया एक सौदागर ।
लाया एक अति सुंदर झूला, देख पिता मन हर्ष से फूला ।।
सभी चकित ईश्वर की माया, उचित समय पर कैसे आया ।
ईश्वर की ये लीला भारी, बालक है कोई चमत्कारी ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

संत सेवा औ’ श्रुति श्रवण, मात पिता उपकारी ।
धर्म पुरुष जन्मा कोई, पुण्यों का फल भारी ||

सूरत थी बालक की सलोनी, आते ही कर दी अनहोनी ।
समाज में थी मान्यता जैसी, प्रचलित एक कहावत ऐसी ।।
तीन बहन के बाद जो आता, पुत्र वह त्रेखण कहलाता ।
होता अशुभ अमंगलकारी, दरिद्रता लाता है भारी ।।
विपरीत किंतु दिया दिखायी, घर में जैसे लक्ष्मी आयी ।
तिरलोकी का आसन डोला, कुबेर ने भंडार ही खोला ।
मान प्रतिष्ठा और बढ़ायी, सबके मन सुख शांति छायी ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

तेजोमय बालक बढ़ा, आनंद बढ़ा अपार ।
शील शांति का आत्मधन, करने लगा विस्तार ।।

एक दिना थाऊमल द्वारे, कुलगुरु परशुराम पधारे ।
ज्यूँ ही वे बालक को निहारे, अनायास ही सहसा पुकारे ।।
यह नहीं बालक साधारण, दैवी लक्षण तेज है कारण ।
नेत्रों में है सात्त्विक लक्षण, इसके कार्य बड़े विलक्षण ।।
यह तो महान संत बनेगा, लोगों का उद्धार करेगा ।
सुनी गुरु की भविष्यवाणी, गदगद हो गये सिरुमलानी ।
माता ने भी माथा चूमा, हर कोई लेकर के घूमा ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

ज्ञानी वैरागी पूर्व का, तेरे घर में आय ।
जन्म लिया है योगी ने, पुत्र तेरा कहलाय ।।
पावन तेरा कुल हुआ, जननी कोख कृतार्थ ।
नाम अमर तेरा हुआ, पूर्ण चार पुरुषार्थ ।।

सैंतालीस में देश विभाजन, सिंध में छोड़ा भू पशु औ’ धन ।
भारत अमदावाद में आये, मणिनगर में शिक्षा पाये ।।
बड़ी विलक्षण स्मरण शक्ति, आसुमल की आशु युक्ति ।
तीव्र बुद्धि एकाग्र नम्रता, त्वरित कार्य औ’ सहनशीलता ।।
आसुमल प्रसन्नमुख रहते, शिक्षक हँसमुखभाई कहते ।
दे दे मक्खन मिश्री कूजा, माँ ने सिखाया ध्यान औ’ पूजा ।।
ध्यान का स्वाद लगा तब ऐसे, रहे न मछली जल बिन जैसे ।
हुए ब्रह्मविद्या से युक्त वे, वही है विद्या या विमुक्तये ।
बहुत देर तक पैर दबाते, भरे कंठ पितु आशिष पाते ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

पुत्र तुम्हारा जगत में, सदा रहेगा नाम ।
लोगों के तुमसे सदा, पूरण होंगे काम ।।

सिर से हटी पिता की छाया, तब माया ने जाल फैलाया ।
बड़े भाई का हुआ कुशासन, व्यर्थ हुए माँ के आश्वासन ।।
गये सिद्धपुर साधना करने, कृष्ण के आगे बहाये झरने ।
सेवक सखा भाव से भीजे, गोविंद माधव तब हैं रीझे ।।
एक दिना एक माई आयी, बोली हे भगवन सुखदायी ।
पड़े पुत्र दुःख मुझे झेलने, खून केस दो बेटे जेल में ।।
बोले आसु सुख पावेंगे, निर्दोष छूट जल्दी आवेंगे ।
बेटे घर आये माँ भागी, आसुमल के पाँवों लागी ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

आसुमल का पुष्ट हुआ, अलौकिक प्रभाव ।
वाकसिद्धि की शक्ति का, हो गया प्रादुर्भाव ।।

बरस सिद्धपुर तीन बिताये, लौट अमदावाद में आये ।
करने लगी लक्ष्मी नर्तन, किया भाई का दिल परिवर्तन ।।
सिनेमा उन्हें कभी न भाये, बलात् ले गये रोते आये ।
जिस माँ ने था ध्यान सिखाया, उसको ही अब रोना आया ।।
माँ करना चाहती थी शादी, आसुमल का मन वैरागी ।
फिर भी सबने शक्ति लगाई, जबरन कर दी उनकी सगाई ।।
शादी को जब हुआ उनका मन, आसुमल कर गये पलायन ।
करत खोज में निकल गया दम, मिले भरूच में अशोक आश्रम ।।
कठिनाई से मिला रास्ता, प्रतिष्ठा का दिया वास्ता ।
घर में लाये आजमाये गुर, बारात ले पहुँचे आदिपुर ।।
विवाह हुआ पर मन दृढ़ाया, भगत ने पत्नी को समझाया ।
सांसारिक व्यौहार तब होगा, जब मुझे साक्षात्कार होगा ।
साथ रहे ज्यूँ आत्मा-काया, साथ रहे वैरागी माया ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

अनश्वर हूँ मैं जानता, सत चित हूँ आनंद ।
स्थिति में जीने लगूँ, होवे परमानंद ।।

मूल ग्रंथ अध्ययन के हेतु, संस्कृत भाषा है एक सेतु ।
संस्कृत की शिक्षा पायी, गति और साधना बढ़ायी ।।
एक श्लोक हृदय में पैठा, वैराग्य सोया उठ बैठा ।
आशा छोड़ नैराश्यवलम्बित, उसकी शिक्षा पूर्ण अनुष्ठित ।।
लक्ष्मी देवी को समझाया, ईशप्राप्ति ध्येय बताया ।
छोड़ के घर मैं अब जाऊँगा, लक्ष्य प्राप्त कर लौट आऊँगा ।।
केदारनाथ के दर्शन पाये, गुरु खोजत पग आगे बढ़ाये ।
आये कृष्ण लीलास्थली में, वृंदावन की कुंज गलिन में ।
कृष्ण ने मन में ऐसा ढाला, वे जा पहुँचे नैनिताला ।।
वहाँ थे श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठित, स्वामी लीलाशाह प्रतिष्ठित ।
भीतर तरल थे बाहर कठोरा, निर्विकल्प ज्यूँ कागज कोरा ।
पूर्ण स्वतंत्र परम उपकारी, ब्रह्मस्थित आत्मसाक्षात्कारी ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

ईशकृपा बिन गुरु नहीं, गुरु बिना नहीं ज्ञान ।
ज्ञान बिना आत्मा नहीं, गावहिं वेद पुरान ।

जानने को साधक की कोटि, सत्तर दिन तक हुई कसौटी ।
कंचन को अग्नि में तपाया, गुरु ने आसुमल बुलवाया ।।
कहा गृहस्थ हो कर्म करना, ध्यान भजन घर पर ही करना ।
आज्ञा मानी घर पर आये, पक्ष में मोटी कोरल धाये ।।
नर्मदा तट पर ध्यान लगाये, लालजी महाराज अति हरषाये ।
भगवत्प्रीति देख मन भाये, दत्त-कुटीर में सादर लाये ।।
उमड़ा प्रभु प्रेम का चसका, अनुष्ठान चालीस दिवस का ।
मरे छः शत्रु स्थिति पायी, ब्रह्मनिष्ठता सहज समायी ।।
शुभाशुभ सम रोना गाना, ग्रीष्म ठंड मान औ’ अपमाना ।
तृप्त हो खाना भूख अरु प्यास, महल औ’ कुटिया आसनिरास ।
भक्तियोग ज्ञान अभ्यासी, हुए समान मगहर औ’ कासी ।।
हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

भाव ही कारण ईश है, न स्वर्ण काठ पाषान ।
सत चित आनंदरूप है, व्यापक है भगवान ।।
ब्रह्मेशान जनार्दन, सारद सेस गणेश ।
निराकार साकार है, है सर्वत्र भवेश ।।

हुए आसुमल ब्रह्माभ्यासी, जन्म अनेकों लागे बासी ।
दूर हो गयी आधि व्याधि, सिद्ध हो गयी सहज समाधि ।।
इक रात नदी तट मन आकर्षा, आयी जोर से आँधी वर्षा ।
बंद मकान बरामदा खाली, बैठे वहीं समाधि लगा ली ।।
देखा किसीने सोचा डाकू, लाये लाठी भाला चाकू ।
दौड़े चीखे शोर मच गया, टूटी समाधि ध्यान खिंच गया ।।
साधक उठा थे बिखरे केशा, राग द्वेष ना किंचित् लेशा ।
सरल लोगों ने साधु माना, हत्यारों ने काल ही जाना ।।
भैरव देख दुष्ट घबराये, पहलवान ज्यूँ मल्ल ही पाये ।
कामीजनों ने आशिक माना, साधुजन कीन्हें परनामा ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

एक दृष्टि देखे सभी, चले शांत गम्भीर ।
सशस्त्रों की भीड़ को, सहज गये वे चीर ।

माता आयी धर्म की सेवी, साथ में पत्नी लक्ष्मी देवी ।
दोनों फूट फूट के रोयी, रुदन देख करुणा भी रोयी ।।
संत लालजी हृदय पसीजा, हर दर्शक आँसू में भीजा ।
कहा सभीने आप जाइयो, आसुमल बोले कि भाइयों ।।
चालीस दिवस हुआ न पूरा, अनुष्ठान है मेरा अधूरा ।
आसुमल की तीव्र तितिक्षा, माँ पत्नी ने की परतीक्षा ।।
जिस दिन गाँव से हुई विदाई, जार जार रोये लोग-लुगाई ।
अमदावाद को हुए रवाना, मियाँगाँव से किया पयाना ।।
मुंबई गये गुरु की चाह, मिले वहीं पै लीलाशाह ।
परम पिता ने पुत्र को देखा, सूर्य ने घटजल में पेखा ।।
घटक तोड़ जल जल में मिलाया, जल प्रकाश आकाश समाया ।
निज स्वरूप का ज्ञान दृढ़ाया, ढाई दिवस ब्रह्मानंद छाया ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

आसोज सुद दो दिवस, संवत् बीस इक्कीस ।
मध्याह्न ढाई बजे, मिला ईस से ईस ।।
देह सभी मिथ्या हुई, जगत हुआ निस्सार ।
हुआ आत्मा से तभी, अपना साक्षात्कार ।।

परम स्वतंत्र पुरुष दर्शाया, जीव गया और शिव को पाया ।
जान लिया हूँ शांत निरंजन, लागू मुझे न कोई बंधन ।।
यह जगत सारा है नश्वर, मैं ही शाश्वत एक अनश्वर ।
नयन हैं दो पर दृष्टि एक है, लघु गुरु में वही एक है ।।
सर्वत्र एक किसे बतलाये, सर्वव्याप्त कहाँ आये जाये ।
अनंत शक्तिवाला अविनाशी, रिद्धि सिद्धि उसकी दासी ।
यदि वह संकल्प चलाये, मुर्दा भी जीवित हो जाये ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

ब्राह्मी स्थिति प्राप्त कर, कार्य रहे ना शेष ।
मोह कभी ना ठग सके, इच्छा नहीं लवलेश ।।
पूर्ण गुरु किरपा मिली, पूर्ण गुरु का ज्ञान ।
आसुमल से हो गये, साँईं आशाराम ।।

जाग्रत स्वप्न सुषुप्ति चेते, ब्रह्मानंद का आनंद लेते ।
खाते पीते मौन या कहते, ब्रह्मानंद मस्ती में रहते ।।
रहो गृहस्थ गुरु का आदेश, गृहस्थ साधु करो उपदेश ।
किये गुरु ने वारे न्यारे, गुजरात डीसा गाँव पधारे ।।
मृत गाय दिया जीवन दाना, तब से लोगों ने पहचाना ।
द्वार पै कहते नारायण हरि, लेने जाते कभी मधुकरी ।।
तब से वे सत्संग सुनाते, सभी आर्ती शांति पाते ।
जो आया उद्धार कर दिया, भक्त का बेड़ा पार कर दिया ।
कितने मरणासन्न जिलाये, व्यसन मांस और मद्य छुड़ाये ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

एक दिन मन उकता गया, किया डीसा से कूच ।
आयी मौज फकीर की, दिया झोंपड़ा फूँक ।।

वे नारेश्वर धाम पधारे, जा पहुँचे नर्मदा किनारे ।
मीलों पीछे छोड़ा मंदर, गये घोर जंगल के अंदर ।।
घने वृक्ष तले पत्थर पर, बैठे ध्यान निरंजन का धर ।
रात गयी प्रभात हो आयी, बाल रवि ने सूरत दिखायी ।।
प्रातः पक्षी कोयल कूकंता, छूटा ध्यान उठे तब संता ।
प्रातर्विधि निवृत्त हो आये, तब आभास क्षुधा का पाये ।
सोचा मैं न कहीं जाऊँगा, यहीं बैठकर अब खाऊँगा ।
जिसको गरज होगी आयेगा, सृष्टिकर्ता खुद लायेगा ।।
ज्यूँ ही मन विचार वे लाये, त्यूँ ही दो किसान वहाँ आये ।
दोनों सिर पर बाँधे साफा, खाद्य-पेय लिये दोनों हाथा ।।
बोले जीवन सफल है आज, अर्घ्य स्वीकारो महाराज ।
बोले संत और पै जाओ, जो है तुम्हारा उसे खिलाओ ।।
बोले किसान आपको देखा, स्वप्न में मार्ग रात को देखा ।
हमारा न कोई संत है दूजा, आओ गाँव करें तुम्हरी पूजा ।।
आशारामजी मन में धारे, निराकार आधार हमारे ।
पिया पेय थोड़ा फल खाया, नदी किनारे जोगी धाया ।।
इक दिन साबरमती तट आये, ऋषि-भूमि के स्पंदन पाये ।
बन गया मोक्ष कुटीर वहाँ पर, तीरथ बना संत को पाकर ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

अमदावाद गुजरात में, है मोटेरा ग्राम ।
ब्रह्मनिष्ठ श्री संत का, यहीं है पावन धाम ।।
आत्मानंद में मस्त हैं, करें वेदांती खेल ।
भक्ति योग और ज्ञान का, सद्गुरु करते मेल ।।
साधिकाओं का अलग, आश्रम नारी उत्थान ।
नारी शक्ति जागृत सदा, जिसका नहीं बयान ।।

वटवृक्ष पर डाली दृष्टि, कर दी अपनी कृपा की वृष्टि ।
परिक्रमा इसकी जो करते, मनोकामना कारज फलते ।।
गुरुदर पर है सब कुछ मिलता, श्रद्धा से जीवन है खिलता ।
ब्रह्मज्ञानी की महिमा भारी, शरण पड़े उनकी बलिहारी ।।
गैस कांड विकराल घटा जब, काँप उठा भोपाल नगर तब ।
जहरी गैस की फैली हवाएँ, हजारों ने प्राण गँवाए ।।
आशारामजी के जो साधक, बचे सभी सद्गुरु थे रक्षक ।
गुरुमंत्र जो निशदिन जपते, वे न अकाल मृत्यु से मरते ।।
कहर सुनामी ने हो ढाया, बाढ़ अकाल भूकम्प हो आया ।
जब भी कोई आपदा आयी, गुरुवर ने सेवा पहुँचायी ।।
आशाओं के राम हमारे, कहलाते हैं ‘बापू’ प्यारे ।
बापू हैं योगी ब्रह्मवेत्ता, कृपाभिलाषी जन गण नेता ।।
अटलजी ने जब आशीष पाया, प्रधानमंत्री पद शोभाया ।
विपतकाल में अर्जी लगायी, सत्ता पूर्ण काल तक पायी ।।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई, बापू चाहें सबकी भलाई ।
कितनों को सन्मार्ग दिखाया, प्रभुप्रेम आनंद बरसाया ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

गुरुनिंदक के संग से, होता सत्यानाश ।
गुरुनिंदा जो करै सुनै, पड़े वो यम की फाँस ।।
गुरुआज्ञा पालन करे, अन्य भावना त्याग ।
ब्रह्मज्ञान का लक्ष्य रहे, शिष्य वही बड़भाग ।।
गुरुमंत्र जपता रहे, करता जो नित ध्यान ।
गुरुसेवा में लगा रहे, निश्चित हो कल्याण ।।

घटना है गोधरा की न्यारी, दुनिया में चर्चित हुई भारी ।
आशारामजी का हेलिकॉप्टर, गिरा गोधरा की धरती पर ।।
पुर्जे चकनाचूर हो गये, और गगन में दूर उड़ गये ।
हजारों की भीड़ थी आयी, फिर भी किसीको खरोंच न आयी ।।
श्वेत ईंधन की फूटी टंकी, लगी आग बुझ गयी स्वयं ही ।
हादसा जब भी ऐसा हुआ है, ना कोई जीवित स्वस्थ बचा है ।।
बापू तुरत पंडाल पधारे, किया नृत्य हर्षित हुए सारे ।
चमत्कार था अजब अनोखा, दुनिया ने घर बैठे देखा ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

लोगों ने यशगान किया, लख-लख किया बखान ।
दस सेकंड का हादसा, चमत्कार ये महान ।।
महाकाल को काल ने, शत शत किया प्रणाम ।
सर्वसमर्थ हैं सद्गुरु, समरथ है प्रभुनाम ।।

बालक वृद्ध और नर-नारी, सभी प्रेरणा पायें भारी ।
एक बार जो दर्शन पाये, शांति का अनुभव हो जाये ।।
नित्य विविध प्रयोग करायें, नादानुसंधान बतायें ।
नाभि से वे ओम कहलायें, हृदय से वे राम कहलायें ।।
सामान्य ध्यान जो लगायें, उन्हें वे गहरे में ले जायें ।
सबको निर्भय योग सिखायें, सबका आत्मोत्थान करायें ।।
लाखों के हैं रोग मिटाये, शोक करोड़ों के हैं छुड़ाये ।
अमृतमय प्रसाद जब देते, भक्त का रोग शोक हर लेते ।।
जिसने नाम का दान लिया है, गुरु अमृत का पान किया है ।
उनका योगक्षेम वे रखते, वे न तीन तापों से तपते ।।
धर्म कामार्थ मोक्ष वे पाते, आपद रोगों से बच जाते ।
सभी शिष्य रक्षा हैं पाते, सर्वव्याप्त सद्गुरु बचाते ।।
सचमुच गुरु हैं दीनदयाल, सहज ही कर देते हैं निहाल ।
वे चाहते सब झोली भर लें, निज आत्मा का दर्शन कर लें ।।
एक सौ आठ जो पाठ करेंगे, उनके सारे काज सरेंगे ।
रहें न चिंता दुःख निराशा, होंगी पूर्ण सभी अभिलाषा ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

वराभयदाता सद्गुरु, परम हि भक्त कृपाल ।
निश्छल प्रेम से जो भजे, साँईं करें निहाल ।।
मन में नाम तेरा रहे, मुख पे रहे सुगीत ।
हमको इतना दीजिये, रहे चरण में प्रीत ।।

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

1
श्री गुरु-महिमा

गुरु बिन ज्ञान न उपजे, गुरु बिन मिटे न भेद।
गुरु बिन संशय न मिटे, जय जय जय गुरुदेव।।
तीरथ का है एक फल, संत मिले फल चार।
सदगुरु मिले अनंत फल, कहत कबीर विचार।।
भव भ्रमण संसार दुःख, ता का वार ना पार।
निर्लोभी सदगुरु बिना, कौन उतारे पार।।
पूरा सदगुरु सेवतां, अंतर प्रगटे आप।
मनसा वाचा कर्मणा, मिटें जन्म के ताप।।
समदृष्टि सदगुरु किया, मेटा भरम विकार।
जहँ देखो तहँ एक ही, साहिब का दीदार।।
आत्मभ्रांति सम रोग नहीं, सदगुरु वैद्य सुजान।
गुरु आज्ञा सम पथ्य नहीं, औषध विचार ध्यान।।
सदगुरु पद में समात हैं, अरिहंतादि पद सब।
तातैं सदगुरु चरण को, उपासौ तजि गर्व।।
बिना नयन पावे नहीं, बिना नयन की बात।
सेवे सदगुरु के चरण, सो पावे साक्षात्।।


श्री आशारामायण पाठ (Shri Asharamayan Path)

Shri Asharamayan Path

गुरु चरण रज शीष धरि, हृदय रूप विचार ।
श्री आशारामायण कहौं, वेदांत को सार ।।
धर्म कामार्थ मोक्ष दे, रोग शोक संहार ।
भजे जो भक्ति भाव से, शीघ्र हो बेड़ा पार ।।

भारत सिंधु नदी बखानी, नवाब जिले में गाँव बेराणी ।
रहते एक सेठ गुण खानि, नाम थाऊमल सिरुमलानी ।।
आज्ञा में रहती मंगीबा, पतिपरायण नाम मंगीबा ।
चैत वद छः* उन्नीस अठानवे, आसुमल अवतरित आँगने ।।
माँ मन में उमड़ा सुख सागर, द्वार पै आया एक सौदागर ।
लाया एक अति सुंदर झूला, देख पिता मन हर्ष से फूला ।।
सभी चकित ईश्वर की माया, उचित समय पर कैसे आया ।
ईश्वर की ये लीला भारी, बालक है कोई चमत्कारी ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

संत सेवा औ’ श्रुति श्रवण, मात पिता उपकारी ।
धर्म पुरुष जन्मा कोई, पुण्यों का फल भारी ||

सूरत थी बालक की सलोनी, आते ही कर दी अनहोनी ।
समाज में थी मान्यता जैसी, प्रचलित एक कहावत ऐसी ।।
तीन बहन के बाद जो आता, पुत्र वह त्रेखण कहलाता ।
होता अशुभ अमंगलकारी, दरिद्रता लाता है भारी ।।
विपरीत किंतु दिया दिखायी, घर में जैसे लक्ष्मी आयी ।
तिरलोकी का आसन डोला, कुबेर ने भंडार ही खोला ।
मान प्रतिष्ठा और बढ़ायी, सबके मन सुख शांति छायी ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

तेजोमय बालक बढ़ा, आनंद बढ़ा अपार ।
शील शांति का आत्मधन, करने लगा विस्तार ।।

एक दिना थाऊमल द्वारे, कुलगुरु परशुराम पधारे ।
ज्यूँ ही वे बालक को निहारे, अनायास ही सहसा पुकारे ।।
यह नहीं बालक साधारण, दैवी लक्षण तेज है कारण ।
नेत्रों में है सात्त्विक लक्षण, इसके कार्य बड़े विलक्षण ।।
यह तो महान संत बनेगा, लोगों का उद्धार करेगा ।
सुनी गुरु की भविष्यवाणी, गदगद हो गये सिरुमलानी ।
माता ने भी माथा चूमा, हर कोई लेकर के घूमा ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

ज्ञानी वैरागी पूर्व का, तेरे घर में आय ।
जन्म लिया है योगी ने, पुत्र तेरा कहलाय ।।
पावन तेरा कुल हुआ, जननी कोख कृतार्थ ।
नाम अमर तेरा हुआ, पूर्ण चार पुरुषार्थ ।।

सैंतालीस में देश विभाजन, सिंध में छोड़ा भू पशु औ’ धन ।
भारत अमदावाद में आये, मणिनगर में शिक्षा पाये ।।
बड़ी विलक्षण स्मरण शक्ति, आसुमल की आशु युक्ति ।
तीव्र बुद्धि एकाग्र नम्रता, त्वरित कार्य औ’ सहनशीलता ।।
आसुमल प्रसन्नमुख रहते, शिक्षक हँसमुखभाई कहते ।
दे दे मक्खन मिश्री कूजा, माँ ने सिखाया ध्यान औ’ पूजा ।।
ध्यान का स्वाद लगा तब ऐसे, रहे न मछली जल बिन जैसे ।
हुए ब्रह्मविद्या से युक्त वे, वही है विद्या या विमुक्तये ।
बहुत देर तक पैर दबाते, भरे कंठ पितु आशिष पाते ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

पुत्र तुम्हारा जगत में, सदा रहेगा नाम ।
लोगों के तुमसे सदा, पूरण होंगे काम ।।

सिर से हटी पिता की छाया, तब माया ने जाल फैलाया ।
बड़े भाई का हुआ कुशासन, व्यर्थ हुए माँ के आश्वासन ।।
गये सिद्धपुर साधना करने, कृष्ण के आगे बहाये झरने ।
सेवक सखा भाव से भीजे, गोविंद माधव तब हैं रीझे ।।
एक दिना एक माई आयी, बोली हे भगवन सुखदायी ।
पड़े पुत्र दुःख मुझे झेलने, खून केस दो बेटे जेल में ।।
बोले आसु सुख पावेंगे, निर्दोष छूट जल्दी आवेंगे ।
बेटे घर आये माँ भागी, आसुमल के पाँवों लागी ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

आसुमल का पुष्ट हुआ, अलौकिक प्रभाव ।
वाकसिद्धि की शक्ति का, हो गया प्रादुर्भाव ।।

बरस सिद्धपुर तीन बिताये, लौट अमदावाद में आये ।
करने लगी लक्ष्मी नर्तन, किया भाई का दिल परिवर्तन ।।
सिनेमा उन्हें कभी न भाये, बलात् ले गये रोते आये ।
जिस माँ ने था ध्यान सिखाया, उसको ही अब रोना आया ।।
माँ करना चाहती थी शादी, आसुमल का मन वैरागी ।
फिर भी सबने शक्ति लगाई, जबरन कर दी उनकी सगाई ।।
शादी को जब हुआ उनका मन, आसुमल कर गये पलायन ।
करत खोज में निकल गया दम, मिले भरूच में अशोक आश्रम ।।
कठिनाई से मिला रास्ता, प्रतिष्ठा का दिया वास्ता ।
घर में लाये आजमाये गुर, बारात ले पहुँचे आदिपुर ।।
विवाह हुआ पर मन दृढ़ाया, भगत ने पत्नी को समझाया ।
सांसारिक व्यौहार तब होगा, जब मुझे साक्षात्कार होगा ।
साथ रहे ज्यूँ आत्मा-काया, साथ रहे वैरागी माया ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

अनश्वर हूँ मैं जानता, सत चित हूँ आनंद ।
स्थिति में जीने लगूँ, होवे परमानंद ।।

मूल ग्रंथ अध्ययन के हेतु, संस्कृत भाषा है एक सेतु ।
संस्कृत की शिक्षा पायी, गति और साधना बढ़ायी ।।
एक श्लोक हृदय में पैठा, वैराग्य सोया उठ बैठा ।
आशा छोड़ नैराश्यवलम्बित, उसकी शिक्षा पूर्ण अनुष्ठित ।।
लक्ष्मी देवी को समझाया, ईशप्राप्ति ध्येय बताया ।
छोड़ के घर मैं अब जाऊँगा, लक्ष्य प्राप्त कर लौट आऊँगा ।।
केदारनाथ के दर्शन पाये, गुरु खोजत पग आगे बढ़ाये ।
आये कृष्ण लीलास्थली में, वृंदावन की कुंज गलिन में ।
कृष्ण ने मन में ऐसा ढाला, वे जा पहुँचे नैनिताला ।।
वहाँ थे श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठित, स्वामी लीलाशाह प्रतिष्ठित ।
भीतर तरल थे बाहर कठोरा, निर्विकल्प ज्यूँ कागज कोरा ।
पूर्ण स्वतंत्र परम उपकारी, ब्रह्मस्थित आत्मसाक्षात्कारी ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

ईशकृपा बिन गुरु नहीं, गुरु बिना नहीं ज्ञान ।
ज्ञान बिना आत्मा नहीं, गावहिं वेद पुरान ।।

जानने को साधक की कोटि, सत्तर दिन तक हुई कसौटी ।
कंचन को अग्नि में तपाया, गुरु ने आसुमल बुलवाया ।।
कहा गृहस्थ हो कर्म करना, ध्यान भजन घर पर ही करना ।
आज्ञा मानी घर पर आये, पक्ष में मोटी कोरल धाये ।।
नर्मदा तट पर ध्यान लगाये, लालजी महाराज अति हरषाये ।
भगवत्प्रीति देख मन भाये, दत्त-कुटीर में सादर लाये ।।
उमड़ा प्रभु प्रेम का चसका, अनुष्ठान चालीस दिवस का ।
मरे छः शत्रु स्थिति पायी, ब्रह्मनिष्ठता सहज समायी ।।
शुभाशुभ सम रोना गाना, ग्रीष्म ठंड मान औ’ अपमाना ।
तृप्त हो खाना भूख अरु प्यास, महल औ’ कुटिया आसनिरास ।
भक्तियोग ज्ञान अभ्यासी, हुए समान मगहर औ’ कासी ।।
हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

भाव ही कारण ईश है, न स्वर्ण काठ पाषान ।
सत चित आनंदरूप है, व्यापक है भगवान ।।
ब्रह्मेशान जनार्दन, सारद सेस गणेश ।
निराकार साकार है, है सर्वत्र भवेश ।।

हुए आसुमल ब्रह्माभ्यासी, जन्म अनेकों लागे बासी ।
दूर हो गयी आधि व्याधि, सिद्ध हो गयी सहज समाधि ।।
इक रात नदी तट मन आकर्षा, आयी जोर से आँधी वर्षा ।
बंद मकान बरामदा खाली, बैठे वहीं समाधि लगा ली ।।
देखा किसीने सोचा डाकू, लाये लाठी भाला चाकू ।
दौड़े चीखे शोर मच गया, टूटी समाधि ध्यान खिंच गया ।।
साधक उठा थे बिखरे केशा, राग द्वेष ना किंचित् लेशा ।
सरल लोगों ने साधु माना, हत्यारों ने काल ही जाना ।।
भैरव देख दुष्ट घबराये, पहलवान ज्यूँ मल्ल ही पाये ।
कामीजनों ने आशिक माना, साधुजन कीन्हें परनामा ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

एक दृष्टि देखे सभी, चले शांत गम्भीर ।
सशस्त्रों की भीड़ को, सहज गये वे चीर ।।

माता आयी धर्म की सेवी, साथ में पत्नी लक्ष्मी देवी ।
दोनों फूट फूट के रोयी, रुदन देख करुणा भी रोयी ।।
संत लालजी हृदय पसीजा, हर दर्शक आँसू में भीजा ।
कहा सभीने आप जाइयो, आसुमल बोले कि भाइयों ।।
चालीस दिवस हुआ न पूरा, अनुष्ठान है मेरा अधूरा ।
आसुमल की तीव्र तितिक्षा, माँ पत्नी ने की परतीक्षा ।।
जिस दिन गाँव से हुई विदाई, जार जार रोये लोग-लुगाई ।
अमदावाद को हुए रवाना, मियाँगाँव से किया पयाना ।।
मुंबई गये गुरु की चाह, मिले वहीं पै लीलाशाह ।
परम पिता ने पुत्र को देखा, सूर्य ने घटजल में पेखा ।।
घटक तोड़ जल जल में मिलाया, जल प्रकाश आकाश समाया ।
निज स्वरूप का ज्ञान दृढ़ाया, ढाई दिवस ब्रह्मानंद छाया ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

आसोज सुद दो दिवस, संवत् बीस इक्कीस ।
मध्याह्न ढाई बजे, मिला ईस से ईस ।।
देह सभी मिथ्या हुई, जगत हुआ निस्सार ।
हुआ आत्मा से तभी, अपना साक्षात्कार ।।

परम स्वतंत्र पुरुष दर्शाया, जीव गया और शिव को पाया ।
जान लिया हूँ शांत निरंजन, लागू मुझे न कोई बंधन ।।
यह जगत सारा है नश्वर, मैं ही शाश्वत एक अनश्वर ।
नयन हैं दो पर दृष्टि एक है, लघु गुरु में वही एक है ।।
सर्वत्र एक किसे बतलाये, सर्वव्याप्त कहाँ आये जाये ।
अनंत शक्तिवाला अविनाशी, रिद्धि सिद्धि उसकी दासी ।
यदि वह संकल्प चलाये, मुर्दा भी जीवित हो जाये ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

ब्राह्मी स्थिति प्राप्त कर, कार्य रहे ना शेष ।
मोह कभी ना ठग सके, इच्छा नहीं लवलेश ।।
पूर्ण गुरु किरपा मिली, पूर्ण गुरु का ज्ञान ।
आसुमल से हो गये, साँईं आशाराम ।।

जाग्रत स्वप्न सुषुप्ति चेते, ब्रह्मानंद का आनंद लेते ।
खाते पीते मौन या कहते, ब्रह्मानंद मस्ती में रहते ।।
रहो गृहस्थ गुरु का आदेश, गृहस्थ साधु करो उपदेश ।
किये गुरु ने वारे न्यारे, गुजरात डीसा गाँव पधारे ।।
मृत गाय दिया जीवन दाना, तब से लोगों ने पहचाना ।
द्वार पै कहते नारायण हरि, लेने जाते कभी मधुकरी ।।
तब से वे सत्संग सुनाते, सभी आर्ती शांति पाते ।
जो आया उद्धार कर दिया, भक्त का बेड़ा पार कर दिया ।
कितने मरणासन्न जिलाये, व्यसन मांस और मद्य छुड़ाये ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

एक दिन मन उकता गया, किया डीसा से कूच ।
आयी मौज फकीर की, दिया झोंपड़ा फूँक ।।

वे नारेश्वर धाम पधारे, जा पहुँचे नर्मदा किनारे ।
मीलों पीछे छोड़ा मंदर, गये घोर जंगल के अंदर ।।
घने वृक्ष तले पत्थर पर, बैठे ध्यान निरंजन का धर ।
रात गयी प्रभात हो आयी, बाल रवि ने सूरत दिखायी ।।
प्रातः पक्षी कोयल कूकंता, छूटा ध्यान उठे तब संता ।
प्रातर्विधि निवृत्त हो आये, तब आभास क्षुधा का पाये ।
सोचा मैं न कहीं जाऊँगा, यहीं बैठकर अब खाऊँगा ।
जिसको गरज होगी आयेगा, सृष्टिकर्ता खुद लायेगा ।।
ज्यूँ ही मन विचार वे लाये, त्यूँ ही दो किसान वहाँ आये ।
दोनों सिर पर बाँधे साफा, खाद्य-पेय लिये दोनों हाथा ।।
बोले जीवन सफल है आज, अर्घ्य स्वीकारो महाराज ।
बोले संत और पै जाओ, जो है तुम्हारा उसे खिलाओ ।।
बोले किसान आपको देखा, स्वप्न में मार्ग रात को देखा ।
हमारा न कोई संत है दूजा, आओ गाँव करें तुम्हरी पूजा ।।
आशारामजी मन में धारे, निराकार आधार हमारे ।
पिया पेय थोड़ा फल खाया, नदी किनारे जोगी धाया ।।
इक दिन साबरमती तट आये, ऋषि-भूमि के स्पंदन पाये ।
बन गया मोक्ष कुटीर वहाँ पर, तीरथ बना संत को पाकर ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

अमदावाद गुजरात में, है मोटेरा ग्राम ।
ब्रह्मनिष्ठ श्री संत का, यहीं है पावन धाम ।।
आत्मानंद में मस्त हैं, करें वेदांती खेल ।
भक्ति योग और ज्ञान का, सद्गुरु करते मेल ।।
साधिकाओं का अलग, आश्रम नारी उत्थान ।
नारी शक्ति जागृत सदा, जिसका नहीं बयान ।।

वटवृक्ष पर डाली दृष्टि, कर दी अपनी कृपा की वृष्टि ।
परिक्रमा इसकी जो करते, मनोकामना कारज फलते ।।
गुरुदर पर है सब कुछ मिलता, श्रद्धा से जीवन है खिलता ।
ब्रह्मज्ञानी की महिमा भारी, शरण पड़े उनकी बलिहारी ।।
गैस कांड विकराल घटा जब, काँप उठा भोपाल नगर तब ।
जहरी गैस की फैली हवाएँ, हजारों ने प्राण गँवाए ।।
आशारामजी के जो साधक, बचे सभी सद्गुरु थे रक्षक ।
गुरुमंत्र जो निशदिन जपते, वे न अकाल मृत्यु से मरते ।।
कहर सुनामी ने हो ढाया, बाढ़ अकाल भूकम्प हो आया ।
जब भी कोई आपदा आयी, गुरुवर ने सेवा पहुँचायी ।।
आशाओं के राम हमारे, कहलाते हैं ‘बापू’ प्यारे ।
बापू हैं योगी ब्रह्मवेत्ता, कृपाभिलाषी जन गण नेता ।।
अटलजी ने जब आशीष पाया, प्रधानमंत्री पद शोभाया ।
विपतकाल में अर्जी लगायी, सत्ता पूर्ण काल तक पायी ।।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई, बापू चाहें सबकी भलाई ।
कितनों को सन्मार्ग दिखाया, प्रभुप्रेम आनंद बरसाया ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

गुरुनिंदक के संग से, होता सत्यानाश ।
गुरुनिंदा जो करै सुनै, पड़े वो यम की फाँस ।।
गुरुआज्ञा पालन करे, अन्य भावना त्याग ।
ब्रह्मज्ञान का लक्ष्य रहे, शिष्य वही बड़भाग ।।
गुरुमंत्र जपता रहे, करता जो नित ध्यान ।
गुरुसेवा में लगा रहे, निश्चित हो कल्याण ।।

घटना है गोधरा की न्यारी, दुनिया में चर्चित हुई भारी ।
आशारामजी का हेलिकॉप्टर, गिरा गोधरा की धरती पर ।।
पुर्जे चकनाचूर हो गये, और गगन में दूर उड़ गये ।
हजारों की भीड़ थी आयी, फिर भी किसीको खरोंच न आयी ।।
श्वेत ईंधन की फूटी टंकी, लगी आग बुझ गयी स्वयं ही ।
हादसा जब भी ऐसा हुआ है, ना कोई जीवित स्वस्थ बचा है ।।
बापू तुरत पंडाल पधारे, किया नृत्य हर्षित हुए सारे ।
चमत्कार था अजब अनोखा, दुनिया ने घर बैठे देखा ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

लोगों ने यशगान किया, लख-लख किया बखान ।
दस सेकंड का हादसा, चमत्कार ये महान ।।
महाकाल को काल ने, शत शत किया प्रणाम ।
सर्वसमर्थ हैं सद्गुरु, समरथ है प्रभुनाम ।।

बालक वृद्ध और नर-नारी, सभी प्रेरणा पायें भारी ।
एक बार जो दर्शन पाये, शांति का अनुभव हो जाये ।।
नित्य विविध प्रयोग करायें, नादानुसंधान बतायें ।
नाभि से वे ओम कहलायें, हृदय से वे राम कहलायें ।।
सामान्य ध्यान जो लगायें, उन्हें वे गहरे में ले जायें ।
सबको निर्भय योग सिखायें, सबका आत्मोत्थान करायें ।।
लाखों के हैं रोग मिटाये, शोक करोड़ों के हैं छुड़ाये ।
अमृतमय प्रसाद जब देते, भक्त का रोग शोक हर लेते ।।
जिसने नाम का दान लिया है, गुरु अमृत का पान किया है ।
उनका योगक्षेम वे रखते, वे न तीन तापों से तपते ।।
धर्म कामार्थ मोक्ष वे पाते, आपद रोगों से बच जाते ।
सभी शिष्य रक्षा हैं पाते, सर्वव्याप्त सद्गुरु बचाते ।।
सचमुच गुरु हैं दीनदयाल, सहज ही कर देते हैं निहाल ।
वे चाहते सब झोली भर लें, निज आत्मा का दर्शन कर लें ।।
एक सौ आठ जो पाठ करेंगे, उनके सारे काज सरेंगे ।
रहें न चिंता दुःख निराशा, होंगी पूर्ण सभी अभिलाषा ।।

हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ हरिॐ ।

वराभयदाता सद्गुरु, परम हि भक्त कृपाल ।
निश्छल प्रेम से जो भजे, साँईं करें निहाल ।।
मन में नाम तेरा रहे, मुख पे रहे सुगीत ।
हमको इतना दीजिये, रहे चरण में प्रीत ।।

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

1
श्री गुरु-महिमा

गुरु बिन ज्ञान न उपजे, गुरु बिन मिटे न भेद।
गुरु बिन संशय न मिटे, जय जय जय गुरुदेव।।
तीरथ का है एक फल, संत मिले फल चार।
सदगुरु मिले अनंत फल, कहत कबीर विचार।।
भव भ्रमण संसार दुःख, ता का वार ना पार।
निर्लोभी सदगुरु बिना, कौन उतारे पार।।
पूरा सदगुरु सेवतां, अंतर प्रगटे आप।
मनसा वाचा कर्मणा, मिटें जन्म के ताप।।
समदृष्टि सदगुरु किया, मेटा भरम विकार।
जहँ देखो तहँ एक ही, साहिब का दीदार।।
आत्मभ्रांति सम रोग नहीं, सदगुरु वैद्य सुजान।
गुरु आज्ञा सम पथ्य नहीं, औषध विचार ध्यान।।
सदगुरु पद में समात हैं, अरिहंतादि पद सब।
तातैं सदगुरु चरण को, उपासौ तजि गर्व।।
बिना नयन पावे नहीं, बिना नयन की बात।
सेवे सदगुरु के चरण, सो पावे साक्षात्।।

Comments

Search This BLOG

विद्या निकेतन के प्राचार्य डॉ दीनबंधु तिवारी जी का छात्रों के नाम संदेश..... स्वतंत्रता दिवस पूर्व संध्या विशेष

  NTC NEWS MEDIA/MOTIHARI मोतिहारी मैं हिंदी माध्यम स्कूलों में विद्या निकेतन एक सर्वश्रेष्ठ शैक्षणिक संस्थान के रूप में स्वयं को वर्षों से स्थापित किए हुए हैं और इसका सारा श्रेय इस विद्यालय के प्राचार्य डॉक्टर दीनबंधु तिवारी जी को जाता है जिन्होंने 72 वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर छात्रों के नाम संदेश प्रेषित किया है सर कहते हैं कि.....   " 72वे स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर मुझे यही कहना है कि आज के छात्र देश के भावी कर्णधार नागरिक बनेंगे उन्हें अपनी रुचि के अनुसार विषयों का चुनाव कर पूरे लगन एवं मनोयोग से अध्ययन करना चाहिए जिससे हमारा देश का चतुर्दिक विकास हो आर्थिक वैज्ञानिक या टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में हमारा देश अन्य सभी देशों से आगे बढ़े यह किसी एक आदमी के करने से संभव नहीं होगा बल्कि हम सभी की सहभागिता से संभव है ।   हम छात्रों को यही सुझाव देना चाहेंगे कि वह अपने मस्तिष्क को रिसर्च की तरफ प्रेरित करें परंपरागत शिक्षा से अलग हटकर व्यवसायिक शिक्षा की तरफ अपनी कदम बढ़ाए देश में बेरोजगारी दूर करने हेतु रोजगार उन्मुक्त शिक्षा की तरफ वह सब लोग प्रवृत्त हो हम किसी क...

व्यक्ति विशेष में पढ़िए मोतिहारी के लाल रामनिवास सिंह की कहानी जिन्होंने 100 रुपया से एक करोड़ की कंपनी बना डाली...

मोतिहारी /नकुल कुमार  मोतिहारी। "कौन कहता है आसमान में सुराग नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो" .......उपरोक्त पंक्तियों को चंपारण के गरीब किसान के बेटे रामनिवास सिंह ने अपनी कड़ी मेहनत एवं बौद्धिक कौशल के बल पर 1 करोड़ से ज्यादा के टर्नओवर की कंपनी बनाकर साबित कर दिया है। कौन है रामनिवास सिंह:- रामनिवास सिंह पूर्वी चंपारण जिले के पताही थाना क्षेत्र के रतनसायर गांव के किसान आनंद किशोर सिंह के पुत्र हैं। चार भाई-बहनों में सबसे छोटे रामनिवास सिंह शुरू से ही पिता के साथ साथ माता एवं भाई बहनों के दुलारे रहे हैं किंतु परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी ना होने के कारण पिता को उनसे जीविकोपार्जन के सिवा कुछ खास उम्मीद नहीं थी जिस कारण उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव की स्कूल में संपन्न हुई। मुंबई की यात्रा, संघर्ष एवं जीवन का टर्निंग प्वाइंट:- 2003 के आते-आते परिवार की माली स्थिति इतनी खराब हो गई कि मैट्रिक का फॉर्म भरने के लिए उनके पास ₹100 तक नहीं थे जिस कारण से वे करंट ईयर में मैट्रिक की परीक्षा देने से वंचित रह गए। उन्हीं दिनों उनके पिता आनंद किशोर सिंह न...

29 एवं 30 जून को होगा चंपारण युवा संसद का आयोजन

आगामी दिनांक 29 व 30 जून को मुंशी सिंह महाविद्यालय में होने वाले दो दिवसीय चम्पारण युवा संसद कार्यक्रम के सफल आयोजन हेतु आयोजन समिति रेनू फाउंडेशन के बैनर तले स्थानीय कार्यालय में बैठक की गयी | इस कार्यक्रम को सफल बनाने हेतु तैयारियों एवं कार्यक्रम के रुपरेखा पर विचार विमर्श किया गया |। इस कार्यक्रम का उद्देश्य चम्पारण का समावेशी  विकास वो उसके रोडमैप तथा विकास कार्यो में आ रहे अड़चनो की भी चर्चा स्थानीय जनप्रतिनिधि कानूनविद , शिक्षाविद तथा अलगअलग क्षेत्रो के जानकारों के समक्ष रखा जायेगा, साथ ही साथ छात्रों वो  नौजवानो को भारतीय संविधान एवं संसद की कार्यवाही की जानकारी भी दी जाएगी। बैठक में संस्थापक राहुल सिंह रेनू , संरक्षक अधिवक्ता पवन कुमार सिंह  ,अधिवक्ता कुंज रमन मिश्र , डॉ हेमंत झा , अधिवक्ता निशांत कुमार , सिद्धार्थ मिश्र , सुधांशु देव , विजय कुमार समेत  आयोजन समिति के सभी सदस्य उपस्थित रहे |

मोतिहारी में श्रद्धांजलि सभा में पुष्पांजलि अर्पित कर दी गई अरुण जेटली को भावभीनी श्रद्धांजलि

मोतिहारी। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली का शनिवार सुबह दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया। वह 66 साल के थे। जेटली की तबीयत पिछले कुछ समय से खराब चल रही थी। अपनी खराब सेहत के चलते उन्होंने सक्रिय राजनीति से खुद को दूर कर लिया था। हालांकि, वह राज्यसभा के सदस्य थे। जेटली का इलाज अमेरिका में हो चुका था। जेटली के निधन का समाचार पाकर देश भर में शोक की लहर दौड़ गई है। अरुण जेटली के निधन पर भाजपा संगठन जिला मोतिहारी के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने भाजपा जिला कार्यालय, गांधी कॉम्प्लेक्स में एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया।श्रद्धांजलि सभा में अरुण जेटली के चित्र पर उपस्थित लोगों ने पुष्पांजलि अर्पित कर अपनी भावभीनी संवेदना प्रकट की। गौरतलब है कि 28 दिसंबर को 1952 में नई दिल्ली पैदा हुए अरुण जेटली ने अपनी स्कूली शिक्षा दिल्ली के सेंट जेवियर्स स्कूल से की जबकि स्नातक की पढ़ाई श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से की। साल 1974 में वो दिल्ली विश्व विद्यालय के छात्र संगठन के अध्यक्ष भी रहे।   ...

नक्सल प्रभावित क्षेत्र में डीएसपी ने बच्चों को दिये पढ़ाई के टिप्स।

NTC NEWS MEDIA/ पकड़ीदयाल नक्सल प्रभावित क्षेत्र में डीएसपी ने बच्चों को दिये पढ़ाई के टिप्स। पकड़ी दयाल शेखपुरवा रोड स्तिथ "कुमार विजन क्लासेज"  मे  बच्चों को पढ़ाई का टिप्स देते डीएसपी। छात्रों को सफलता हासिल करने को लेकर 10 से 12 घंटा पढ़ाई करना चाहिये। बच्चों को पढ़ाई के साथ नैतिकता,अनुशासनात्मक एवं संस्कारित ढंग से अध्ययन करना चाहिए। बच्चों को सुबह उठकर माता पिता का पैर छूने के बाद ही पढ़ाई में लगना चाहिए।                         उक्त बातें पकड़ीदयाल डीएसपी दिनेश  कुमार पाण्डेय ने पकड़ीदयाल शेखपुरवा रोड स्तिथ " कुमार विजन क्लासेज"   के प्रांगण में सैकड़ो छात्रों को पढ़ाई में सफलता का मंत्र देते हुये कहा।       लक्ष्य निर्धारित कर करे पढ़ाई ,मिलेगा सफलता                                                डीएसपी श्री पाण्डेय ने...

डांस के क्षेत्र में कामयाबी के बाद अब फैशन और मॉडलिंग की दुनिया में भी अपना जलवा बिखेर रही हैं अनुमति सिंह

पटना। डांस के क्षेत्र में कामयाबी का परचम लहराने के बाद अनुमति सिंह ने अब फैशन और मॉडलिंग की दुनिया में भी अपना जलवा इंडिया 2019 प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और मिसेज फोटोजेनिक और मिसेज टैलेंटड का खिताब अपने नाम कर लिया।        उड़ीसा में जन्मीं अनुमति सिंह के पिता श्री रवीन्द्र नाथ दास रेलवे में कार्यरत थे जबकि उनकी मां श्रीमती गोलापी देवी दास गृहणी हैं। दो भाई और दो बहनों में सबसे छोटी अनुमति को उनके घर वालों ने अपनी राह खुद चुनने की आजादी दे रखी थी।बॉलीवुड की धकधक गर्ल माधुरी दीक्षित के डांस से प्रभावित होने की वजह से अनुमति सिंह उनकी तरह ही डांस के क्षेत्र में नाम रौशन करना चाहती थी। अनुमति स्कूल में होने वाले श सांस्कृतिक कार्यक्रम में डांस परफार्म किया करती और जिसके लिये उन्हें काफी सराहना मिला करती थी। अनुमति सिंह ने अपनी प्रारिंभिक शिक्षा उड़ीसा से पूरी की। इस बीच उनकी शादी बिजनेस मैन श्री अभय प्रताप सिंह से हो गयी।अनमति सिंह यदि चाहती तो विवाह के बंधन में बनने के बाद एक आम नारी की तरह जीवन गुजर बसर कर सकती थी लेकिन वह डांसिंग की दुनिया...

बॉलीवुड में राज करना चाहते हैं अमित कुमार भारती

पटना। बिहार के नालंदा जिले के बिहार शरीफ के रहने वाले अमित  कुमार  भारती ने मॉडलिंग हंट शो मिस्टर एंड मिस मगध सीजन 02 में फर्स्ट रनर अप का खिताब अपने नाम कर लिया हो लेकिन उनके बड़े सपने अभी पूरे होने बाकी  है।  सुपरनोवा इवेंट मैनेजमेंट की ओर से हाल ही में बिहारशरीफ में मिस्टर एंड मिस मगध सीजन 02 का फिनाले हुआ जिसमें अमित ने फर्स्ट रनर अप काऋ खिताब अपने नाम किया।  अमित के पिता कृष्णा कुमार बिजनेस जबकि मां श्रीमती  सावित्री देवी गृहणी है। अमित के तीन भाई और चार बहनें है।  अमित की  प्रारंभिक शिक्षा मुंबई से हुई जहां उनके पिता बिजनेस किया करते थे। कुछ  समय के बाद अमित अपने परिवार वालों के साथ अपने गृह जिले नालंदा आ गये।  बचपन के दिनों से अमित की रूचि मॉडलिंग और अभिनय की ओर थी।  शाहरूख खान को  आदर्श मानने वाले अमित अभिनय के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाना चाहते थे। हाल ही में उन्हें सोशल मीडिया पर मिस्टर एंड मिस मगध सीजन 02 के बारे  में पता चला और उन्होंने इस शो में हिस्सा लिया।  अमित ...

जब कलेक्टर के साथ स्कूल पहुँची खुशी... पढ़िए रितु साहू की रिपोर्ट

जेल में 6 साल से बेगुनाही की सजा काट रही खुशी का हुआ इंटरनेशनल स्कूल में एडमिशन, कलेक्टर के साथ स्कूल पहुँची खुशी बिलासपुर (छग) जब एक पिता अपनी बेटी को खुद से विदा करता है तब दोनों तरफ से सिर्फ आंसू ही बहते हैं। आज बिलासपुर केंद्रीय जेल में ऐसा ही नजारा देखने को मिला। जेल में बंद एक सजायफ्ता कैदी अपनी 6 साल की बेटी खुशी( बदला हुआ नाम) से लिपटकर खूब रोया। वजह बेहद खास थी। आज से उसकी बेटी जेल की सलाखों के बजाय बड़े स्कूल के हॉस्टल में रहने जा रही थी। करीब एक माह पहले जेल निरीक्षण के दौरान कलेक्टर डॉ संजय अलंग की नजर महिला कैदियों के साथ बैठी खुशी पर गयी थी। तभी वे उससे वादा करके आये थे कि उसका दाखिला किसी बड़े स्कूल में करायेंगे। आज कलेक्टर डॉ संजय अलंग खुशी को अपनी कार में बैठाकर केंद्रीय जेल से स्कूल तक खुद छोड़ने गये। कार से उतरकर खुशी एकटक स्कूल को देखती रही। खुशी कलेक्टर की उंगली पकड़कर स्कूल के अंदर तक गयी। एक हाथ में बिस्किट और दूसरे में चॉकलेट लिये वह स्कूल जाने के लिये सुबह से ही तैयार हो गयी थी। आमतौर पर स्कूल जाने के पहले दिन बच्चे रोते हैं। लेकिन खुशी आज बेहद खुश...

भगवान से कम नहीं है.....इमरजेंसी वाले डॉक्टर साहब

छत्तीसगढ़। इस देश में हर वर्ग के हिसाब से हर इंसान की हैसियत के हिसाब से और हर इंसान की चॉइस के हिसाब से हर किसी का अपना एक डॉक्टर होता है।उच्च श्रेणी के उच्च वर्ग वाले लोगों के फैमिली डॉक्टर होते हैं। मध्यमवर्ग वालों के लिए चैरिटेबल, सरकारी या थोड़े से सस्ते वाले डॉक्टर होते हैं। गांव में पाए जाने वाले कंधे पर झोला टांग कर घूमने वाले भी देशी डॉक्टर होते हैं। जो किसी डॉक्टर के पास इंजेक्शन लगाने गोलियां दवाइयां देने का काम सीख कर गांव वालों की सेवाएं करते हैं। अब गांव वालों के लिए तो वह भी भगवान से कम नहीं है, जो मौके पर उनके कष्ट का निवारण कर उन्हें दर्द से निजात दिलवा देते हैं। साईकल पर गली में खड़े खड़े ही मरीजों की ओ पी डी से लेकर एम आर आई तक करने वाले गांव के डॉक्टर जब किसी मरीज को देखते हैं, तो मरीज उन से तरह-तरह के सवाल और अपने दर्द के बारे में तलब करते हैं। सिर में दर्द है,पीठ में दर्द है,कमर में दर्द है यह दवाई ले लो। क्या इससे काम चल जाएगा....? चिंता मत करो सारी बिमारीयों काम तमाम करेगी। इस तरह से बिना बेड पर लेटा कर इलाज कर देने वाले, मौके पर काम आने वाले इन झोला...

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ थीम पर संपन्‍न हुआ न्‍यू बूगी - बूगी ऐकेडमी का वार्षिकोत्‍सव

प्रेमचंद रंगशाला में बच्‍चों ने सजायी डांस की म‍हफिल, दिया पुलावामा के शहीदों को श्रद्धांजलि पटना। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ थीम पर आयोजित न्‍यू बूगी - बूगी डांस ऐकेडमी का 23 वां वार्षिकोत्‍सव रविवार को पटना स्थित प्रेमचंद रंगशाला में संपन्‍न हो गया। इसका विधिवत उद्धाटन ऐकेडमी के शिक्षकों ने दीप प्रज्‍ज्‍वलित कर किया। 23 वां वार्षिकोत्‍सव के मौके पर ऐकेडमी तकरीबन 400 छात्रों ने हिस्‍सा लिया और एक से एक पावर पैक परफॉर्मेंस से ऑडिटोरियम में मौजूद सभी दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया। इस दौरान डांस, मॉडलिंग, सिंगिंग की प्रतियोगिता भी आयोजित की गई।   कार्यक्रम की शुरूआत गुरूर ब्रह्मा, गुरूर विष्‍णु वंदना से हुई, जिस पर बच्‍चों ने अदभुद प्रस्‍तुति दी। इसके बाद छोटे बच्‍चों ने अपने डांस से हॉल में मौजूद सभी दर्शकों का दिल जीत लिया, तो बड़े बच्‍चे और बच्चियों ने गरीबी, बलात्‍कार और पुलवामा में हुए आतंकी घटना व सर्जिकल स्‍ट्राइक को लेकर बेहतरीन डांस के साथ शहीद भररतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि दी। खुद ऐकेडमी के डायरेक्‍टर अनिल राज ने शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी और उनके बलिदान के ...