---:चाहत:--- रोश़न हो फिर खु़दारा, उलफ़त का वो सबेरा । मिट जाय हर दिलों से, नफ़रत का बिष अंधेरा ।। राहत -सुकूनों -चैन के , वादे में खौफ़ है, जुल्मों सितम ने उनको , हर ओर से है घेरा । कब से पड़ा हुआ है, कब तक रहेगा यारब, इन्सानियत के घर में, शैतानियत डेरा । इन्साफ़ क्या मिलेगा, फरियाद करूं किससे, आदिल वही कातिल वही, डाकू वही लुटेरा। माँगी दुआ"भ्रमर"ने, शादाब हो गुलिंस्तां, झुलसे हुये चमन में, ख़ुशबू का हो बसेरा ।। विजय नारायण अग्रवाल 'भ्रमर' रायबरेली 27. जून 2018