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राजधानी पटना में दिखायी जायेगी लघु फिल्म "पुर्नजन्म"

पटना। जाने माने लेखक- निर्देशक अमर ज्‍योति झा की लघु फिल्‍म 'पुनर्जन्‍म(रिबर्थ) राजधानी पटना में हो रहे बिहार आर्ट फिल्म फेस्टिबल में कल दिखायी जायेगी।     एथेंस इंटरनेशनल फिल्म एंड वीडियो फेस्टिवल (आस्कर अवार्ड क्वालिफाइंग फिल्म फेस्टिबल) में हाल ही में दिखायी जा चुकी अमर ज्योति झा की की लघु फिल्‍म 'पुनर्जन्‍म(रिबर्थ) राजधानी पटना के बिहार म्यूजियम में चल रहे बिहार आर्ट फिल्म फेस्टिबल में 02 जुलाई को शाम 4.30 बजे दिखायी जायेगी। इसके लिये प्रवेश नि.शुल्क है।   लीला फिल्म्स एंड एंटरटेनमेंट के बैनर तले बनी इस फिल्म के लेखक और निर्देशक अमर ज्योति झा है। सिनेमैटोग्राफर-रंजीत सिंह, प्रोडक्शन मैनेजर- संजय शाह, एडिटर –मनोज राउत, असिस्टेंट डायरेक्टर - विकास बच्चन है।         निर्देशक अमर ज्योति झा की लघु फिल्म 'पुनर्जन्‍म(रिबर्थ)मानव असंवेदनशीलता, झूठे आदर्शों और पाखंड को दर्शाती है। फिल्म में अमर ज्योति झा ने लेखन -निर्देशन के साथ ही अभिनय भी किया है। यह फिल्म इससे पूर्व  जापान, कनाडा, चिली, लॉस एंजेलिस, पुणे, कोल...

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ थीम पर संपन्‍न हुआ न्‍यू बूगी - बूगी ऐकेडमी का वार्षिकोत्‍सव

प्रेमचंद रंगशाला में बच्‍चों ने सजायी डांस की म‍हफिल, दिया पुलावामा के शहीदों को श्रद्धांजलि पटना। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ थीम पर आयोजित न्‍यू बूगी - बूगी डांस ऐकेडमी का 23 वां वार्षिकोत्‍सव रविवार को पटना स्थित प्रेमचंद रंगशाला में संपन्‍न हो गया। इसका विधिवत उद्धाटन ऐकेडमी के शिक्षकों ने दीप प्रज्‍ज्‍वलित कर किया। 23 वां वार्षिकोत्‍सव के मौके पर ऐकेडमी तकरीबन 400 छात्रों ने हिस्‍सा लिया और एक से एक पावर पैक परफॉर्मेंस से ऑडिटोरियम में मौजूद सभी दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया। इस दौरान डांस, मॉडलिंग, सिंगिंग की प्रतियोगिता भी आयोजित की गई।   कार्यक्रम की शुरूआत गुरूर ब्रह्मा, गुरूर विष्‍णु वंदना से हुई, जिस पर बच्‍चों ने अदभुद प्रस्‍तुति दी। इसके बाद छोटे बच्‍चों ने अपने डांस से हॉल में मौजूद सभी दर्शकों का दिल जीत लिया, तो बड़े बच्‍चे और बच्चियों ने गरीबी, बलात्‍कार और पुलवामा में हुए आतंकी घटना व सर्जिकल स्‍ट्राइक को लेकर बेहतरीन डांस के साथ शहीद भररतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि दी। खुद ऐकेडमी के डायरेक्‍टर अनिल राज ने शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी और उनके बलिदान के ...

'तू बड़ा कि मैं बड़ा' की बड़ी गहरी बीमारी: अजय सिंह

इस देश में 'तू बड़ा कि मैं बड़ा' की बड़ी गहरी बीमारी है। कुंठावश लोगों में खुद को श्रेष्ठ साबित करने की चुल्ल मची रहती है। नौकरी वाले पेशे में कौन श्रेष्ठ है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि... 1. कौन किससे ऊंची आवाज में बात कर लेता है! 2. कौन किससे पानी या अपना बैग मंगवा लेता है! 3. कौन किसे 'तुम' संबोधिक करके बात कर लेता है! 4. कौन बात-बात पर किसपर नाराजगी जाहिर कर देता है! 5. कौन 4 लोगों के बीच किसे घुड़ककर डाट लेता है! 6. कौन किससे किसी बहाने अपना जूता/चप्पल छुवा लेता है। सुधार करवाने के लिए डाटना या नाराजगी व्यक्त करना गलत नहीं है। लेकिन मात्र खुद को श्रेष्ठ साबित करने की खुजली (बॉसिज़्म की बीमारी) शांत करने के लिए ऐसे प्रपंच अपनाना संकीर्णता है। भारत के लोगों में कुंठा और संकीर्णता की यह रोचक बीमारी संभवत: लंबे समय तक गुलामी/दास प्रथा की जंजीरें झेलने के कारण उपजी है। गुलाम मानसिकता और सीमित सोच के लोग/अधिकारी ऐसा करके अपनी कुंठा शांत करते हैं। नोट: यह कटु सत्य है। आप सबने भी इसे अक्सर दो लोगों के बीच महसूस जरूर किया होगा। यह बीमारी आपको बहुतायत मिलेगी। व...

भगवान से कम नहीं है.....इमरजेंसी वाले डॉक्टर साहब

छत्तीसगढ़। इस देश में हर वर्ग के हिसाब से हर इंसान की हैसियत के हिसाब से और हर इंसान की चॉइस के हिसाब से हर किसी का अपना एक डॉक्टर होता है।उच्च श्रेणी के उच्च वर्ग वाले लोगों के फैमिली डॉक्टर होते हैं। मध्यमवर्ग वालों के लिए चैरिटेबल, सरकारी या थोड़े से सस्ते वाले डॉक्टर होते हैं। गांव में पाए जाने वाले कंधे पर झोला टांग कर घूमने वाले भी देशी डॉक्टर होते हैं। जो किसी डॉक्टर के पास इंजेक्शन लगाने गोलियां दवाइयां देने का काम सीख कर गांव वालों की सेवाएं करते हैं। अब गांव वालों के लिए तो वह भी भगवान से कम नहीं है, जो मौके पर उनके कष्ट का निवारण कर उन्हें दर्द से निजात दिलवा देते हैं। साईकल पर गली में खड़े खड़े ही मरीजों की ओ पी डी से लेकर एम आर आई तक करने वाले गांव के डॉक्टर जब किसी मरीज को देखते हैं, तो मरीज उन से तरह-तरह के सवाल और अपने दर्द के बारे में तलब करते हैं। सिर में दर्द है,पीठ में दर्द है,कमर में दर्द है यह दवाई ले लो। क्या इससे काम चल जाएगा....? चिंता मत करो सारी बिमारीयों काम तमाम करेगी। इस तरह से बिना बेड पर लेटा कर इलाज कर देने वाले, मौके पर काम आने वाले इन झोला...

नुसरतजहां को इस्लाम-विरोधी समझना भी बिल्कुल पोंगापंथी : डॉ वेद प्रताप वैदिक

डॉक्टर वेदप्रताप वैदिक राजनीतिज्ञ एवं अपने बेबाक विचारों के लिए जाने जाते हैं उन्होंने हिंदुत्व और इस्लाम की अतिवाद पर जो अपने विचार प्रकट किए हैं आइए देखते हैं कि उन्होंने हिंदू और मुसलमान को किस ढंग से देखा है.... डॉक्टर वैदिक कहते हैं कि ....आज हमारे विचार के लिए दो विषय सामने आए हैं। एक तो कानपुर के युवा मुहम्मद ताज का, जिसे कुछ हिंदू नौजवानों ने बेरहमी से पीटा और उससे ‘जय श्रीराम’ बुलवाने की कोशिश की और दूसरा प. बंगाल से चुनी गई सांसद तृणमूल कांग्रेस की नुसरतजहां का, जिनके खिलाफ देवबंद के किसी मौलवी ने फतवा जारी किया है, क्योंकि उन्होंने किसी जैन से शादी कर ली है और संसद में शपथ लेते समय वे सिंदूर लगाकर और मंगलसूत्र पहनकर आई थीं। ये दोनों मसले ऐसे हैं, जिनमें हमें हिंदुत्व और इस्लाम का अतिवाद दिखाई पड़ता है। इन दोनों मामलों का न तो हिंदुत्व से कुछ लेना-देना है और न ही इस्लाम से ! किसी मुसलमान या ईसाई की हत्या या पिटाई आप इसलिए कर दें कि वह राम का नाम नहीं ले रहा है, यह तो राम का ही घोर अपमान है। आप रामभक्त नहीं, रावणभक्त हैं। आपको अपने आप को हिंदू कहने का अधिकार भी नहीं है...

Our desires are a reflection of our morals: Zaira Wasim

Quran and the guidance of Allah’s messenger (PBUH) became the weighing factor in my decision making and reasoning and it has changed my approach to life and it’s meaning. Our desires are a reflection of our morals, our values are an externalization of our internal integrity. Similarly, our relationship with the Quran and Sunnah defines and sets the tone of our relationship with Allah and  our religion , our ambitions, purpose and the meaning of life. I carefully questioned the deepest sources of my ideas of success, meaning and the purpose of my life. The source code that governed and impacted my perceptions evolved into a different dimension. Success isn’t correlated with our biased, delusional and conventional shallow measures of life. Success is the accomplishment of the purpose of our creation. We have forgotten the purpose we were created for as we ignorantly continue to pass through our lives; deceiving our conscience. “And That the hearts of those who don’t believe...

Do not allow such people to influence your choices in life: Zaira Wasim

Strive not to surrender to your desires for desires are infinite and always leap out ahead of whatever has just been achieved. Do not deceive yourself or become deluded and find believability in the self assured biased narratives of the principles of deen-where one conceals the truth while knowing it or where one picks and chooses to accept only what suits his situation or desires the best. Sometimes we have deep flaw in our iman  and we often cover it up with words and philosophies. What we say is not in our hearts and we seek every manner of excuse for clinging to it and indeed He is aware of the contradictions, He is aware of all the thoughts unspoken for He is All-Hearing (As-Sami), the All-Seeing (Al-Baseer), and the All-Knowing (Al-Aleem). “And Allah knows what you conceal and what you reveal ”. [Quran 16:19]. Instead of valuing your own deceptive conviction, make genuine efforts to strive and discover and understand the truth yourself with a heart full of faith and sin...