इस देश में 'तू बड़ा कि मैं बड़ा' की बड़ी गहरी बीमारी है। कुंठावश लोगों में खुद को श्रेष्ठ साबित करने की चुल्ल मची रहती है। नौकरी वाले पेशे में कौन श्रेष्ठ है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि...
1. कौन किससे ऊंची आवाज में बात कर लेता है!
2. कौन किससे पानी या अपना बैग मंगवा लेता है!
3. कौन किसे 'तुम' संबोधिक करके बात कर लेता है!
4. कौन बात-बात पर किसपर नाराजगी जाहिर कर देता है!
5. कौन 4 लोगों के बीच किसे घुड़ककर डाट लेता है!
6. कौन किससे किसी बहाने अपना जूता/चप्पल छुवा लेता है।
2. कौन किससे पानी या अपना बैग मंगवा लेता है!
3. कौन किसे 'तुम' संबोधिक करके बात कर लेता है!
4. कौन बात-बात पर किसपर नाराजगी जाहिर कर देता है!
5. कौन 4 लोगों के बीच किसे घुड़ककर डाट लेता है!
6. कौन किससे किसी बहाने अपना जूता/चप्पल छुवा लेता है।
सुधार करवाने के लिए डाटना या नाराजगी व्यक्त करना गलत नहीं है। लेकिन मात्र खुद को श्रेष्ठ साबित करने की खुजली (बॉसिज़्म की बीमारी) शांत करने के लिए ऐसे प्रपंच अपनाना संकीर्णता है। भारत के लोगों में कुंठा और संकीर्णता की यह रोचक बीमारी संभवत: लंबे समय तक गुलामी/दास प्रथा की जंजीरें झेलने के कारण उपजी है। गुलाम मानसिकता और सीमित सोच के लोग/अधिकारी ऐसा करके अपनी कुंठा शांत करते हैं।
नोट: यह कटु सत्य है। आप सबने भी इसे अक्सर दो लोगों के बीच महसूस जरूर किया होगा। यह बीमारी आपको बहुतायत मिलेगी। विशेष रूप से सरकारी कार्यालयों और राजनेताओं में यह बीमारी आपको खासतौर पर दिखेगी।
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