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Do not allow such people to influence your choices in life: Zaira Wasim

Strive not to surrender to your desires for desires are infinite and always leap out ahead of whatever has just been achieved. Do not deceive yourself or become deluded and find believability in the self assured biased narratives of the principles of deen-where one conceals the truth while knowing it or where one picks and chooses to accept only what suits his situation or desires the best.
Sometimes we have deep flaw in our iman  and we often cover it up with words and philosophies. What we say is not in our hearts and we seek every manner of excuse for clinging to it and indeed He is aware of the contradictions, He is aware of all the thoughts unspoken for He is All-Hearing (As-Sami), the All-Seeing (Al-Baseer), and the All-Knowing (Al-Aleem). “And Allah knows what you conceal and what you reveal”. [Quran 16:19]. Instead of valuing your own deceptive conviction, make genuine efforts to strive and discover and understand the truth yourself with a heart full of faith and sincerity.  “O you who have believed, if you are conscious of Allah, He will give you the ability to distinguish right from wrong”.  (Quran 8:29).
Don’t look for role models or measures of success in the displeasure of Allah and the transgressions of His commandments. Do not allow such people to influence your choices in life or dictate your goals or ambitions. The Prophet said, “A person will be (raised on the day of Judgement) with whom he loves.” And do not become arrogant to seek advice from the better informed but position yourself away from your ego and arrogance and rely only on Allah’s guidance, indeed only He is the turner of the hearts and the ones He guides, none can lead astray. Not everyone has the conscience or the conscious to recognise the what we need to know or change and hence, it is not for us to judge, abuse, belittle or mock such people. It is our responsibility to make a positive impact by reinforcing the correct understanding by reminding each other. “And remind, for indeed the reminder benefits the believers” (Quran 51:55).
And we must do so not by ramming facts down each others throats by abuse or hostile behaviour or through violent disapprovals but it can only be done through kindness and mercy that we can affect the people around us. [If you see that one of you has slipped, correct him, pray for him and do not help the shaytan against him by insulting or mocking him- Umar Ibn Al-Khattaab]
But before we do that we must remember to exemplify Islam and it’s understanding ourselves in our knowledge and in our hearts, actions, intentions and behaviour and then use it to benefit the ones lack grasp on the fundamentals of the religion in terms of understanding, beliefs and manners . And remember that when you will start your journey or to find your ground in His Commandments- you are going face hardships, resistance, ridicule or discomfort from others and sometimes it can come from people who you love and are the closest to you.
Sometimes it can be because of how you have been acting previously or have acted all your life, but do not let it discourage you or lead you to lose hope in Allah’s mercy and guidance- for He is Al-Hādīy (The Guide). Do not let your previous actions stop you from seeking repentance, know that He is Al-Ghafaar (The repeatedly forgiving).
Truly, Allah loves those who turn unto Him in repentance and loves those who purify themselves. [Quran, 2:222]. Do not let the  judgement, ridicule, abuse, words or fear of people take you off from the path of you wish to be on or stop you from expressing yourself to the fullest, remember He is Al-Walīy the helper. Do not let the worry of tomorrow get in your way to reassess your life, for he is Ar-Ražzaq (The Provider).
It can be a tough, complicated and sometimes an unimaginably lonely path, especially in today’s time but remember
the Messenger of Allah (PBUH) said: “There will come upon the people a time when holding onto the religion will be like holding onto hot coal.”
May Allah guide our boats to find its shore and help us to distinguish between truth and deception. May Allah makes us strengthen us in our Imaan and make us amongst the ones who engage in His remembrance and make our hearts firm and help us to remain steadfast.
May Allah give us a better understanding of His wisdom and allow us to exhibit our efforts to alleviate doubt and error at individual levels and guide each other. May Allah cleanse our hearts from hypocrisy, arrogance and ignorance and  rectify our intentions and grant us sincerity in speech and in our deeds.

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बॉलीवुड में राज करना चाहते हैं अमित कुमार भारती

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जेल में 6 साल से बेगुनाही की सजा काट रही खुशी का हुआ इंटरनेशनल स्कूल में एडमिशन, कलेक्टर के साथ स्कूल पहुँची खुशी बिलासपुर (छग) जब एक पिता अपनी बेटी को खुद से विदा करता है तब दोनों तरफ से सिर्फ आंसू ही बहते हैं। आज बिलासपुर केंद्रीय जेल में ऐसा ही नजारा देखने को मिला। जेल में बंद एक सजायफ्ता कैदी अपनी 6 साल की बेटी खुशी( बदला हुआ नाम) से लिपटकर खूब रोया। वजह बेहद खास थी। आज से उसकी बेटी जेल की सलाखों के बजाय बड़े स्कूल के हॉस्टल में रहने जा रही थी। करीब एक माह पहले जेल निरीक्षण के दौरान कलेक्टर डॉ संजय अलंग की नजर महिला कैदियों के साथ बैठी खुशी पर गयी थी। तभी वे उससे वादा करके आये थे कि उसका दाखिला किसी बड़े स्कूल में करायेंगे। आज कलेक्टर डॉ संजय अलंग खुशी को अपनी कार में बैठाकर केंद्रीय जेल से स्कूल तक खुद छोड़ने गये। कार से उतरकर खुशी एकटक स्कूल को देखती रही। खुशी कलेक्टर की उंगली पकड़कर स्कूल के अंदर तक गयी। एक हाथ में बिस्किट और दूसरे में चॉकलेट लिये वह स्कूल जाने के लिये सुबह से ही तैयार हो गयी थी। आमतौर पर स्कूल जाने के पहले दिन बच्चे रोते हैं। लेकिन खुशी आज बेहद खुश

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