तुम्हारे तड़प में,
मैं जीने लगा हूं।।
तुम्हारा जहर,
मैं पीने लगा हूं।
और खुशनसीबी रही होगी,
उस रोमियो की, जिससे
तुमने बेवफाई की होगी ।
मैं तो,
बस यूं ही फंस गया,
जान बूझकर,
तुम्हारी, कसौटी पूरण को नहीं,
अपितु,
उन सबको बचाने के लिए,
जो तुममें वासना,
और
जिनमें तुम अवसर तलाशती थी ।
तुम्हारी बेवफाई ने ही,
उन्हें रास्ता दिखाया,
आगे का।।
जीवन जीने की कला,
प्रस्फुटित हुई, उनमें
वास्तव में,
तुम्हारी बेवफाई पूजनीय है।।
शुभ रात्रि
नकुल कुमार आलोचक
मोतिहारी पूर्वी चम्पारण बिहार
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