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Champaran Youth conference 1 April 2017

Selected Speaker#6#Nakul kumar from East Champaran,Bihar,India.
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मैं नकुल कुमार, मोतिहारी पूर्वी चंपारण बिहार का रहने वाला हूं। मेरा जन्म एक बहुत ही गरीब परिवार में हुआ। अपने माता-पिता के नौ संतानों में मैं चौथे स्थान पर हूं। आलोचना मेरी प्रकृति है और कलम ही मेरा हथियार। कविता लिखना शौक है और पढ़ाना ही सामाजिक सरोकार। 2008 में मैट्रिक एवं 2010 में ISc. जिला स्कूल मोतिहारी से प्रथम श्रेणी में पास की। फिर 2010 में हीं नवीन राजकीय पालिटेक्निक, पटना में दाखिला लिया। सपने आसमान नापने के थे लेकिन लचर शैक्षणिक व्यवस्था ने जमीन पर ऐसे पटका की उठने में वर्षों लग गए। पालिटेक्निक में मेरा दाखिला " Mechanical Automobile Engineering" में हुआ। मैं सपने देखने लगा कि मैं पानी से चलने वाला इंजन डेवलप करूंगा। लेकिन पहले ही दिन वर्कशॉप के शिक्षक ने समझा दिया कि यहां पानी से चलने वाला इंजन तो नही बना पाओगे हां पानी पी पी-कर semester पास करने वाले इंजन अवश्य ही बन जाओगे। मैं कहां सपने लिए आसमान में उड़ रहा था और कहां उन्होंने मुझे जमीन पर पटक दिया। 2013 में पालिटेक्निक की डीग्री मिल गई लेकिन न प्लेसमेंट के लिए कंपनियां आईं और न ही जाब मिला। अब डीग्री लेकर जाब लेने की जद्दोजहद होने लगा। चुकी मैं fresher था, फिर भी मुझसे हर जगह 6 माह-एक वर्ष का experience certificate की मांग की गई। मेरे पास पालिटेक्निक की डिग्री और कुछ भी करने का जज्बा के सिवा कुछ भी नहीं था। फिर बेरोजगार बेचारा मरता क्या नही करता। पहले से एक ट्यूशन पढ़ाता था और अब मजबूरी में ज्यादा tuition पढ़ाने लगा
      अत: अपने इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु मैंने 31 December 2014 में पटना छोड़कर अपने गृहनगर मोतिहारी आ गया। आया तो सही उद्देश्य से था लेकिन परिवार की खराब माली हालत ने मुझे फिर से भटकने को मजबूर कर दिया। पटना के ठीक उलटा यहां मुझे शुरुआत करने का मौका चाहिए था और वह मौका मुझे 1 जनवरी 2016 को मिला जब सिंघिया गांव के कुछ गरीब बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। मेहनत काफी ज्यादा थी और कमाई न मात्र की थी। लेकिन "बचपन पढ़ाओं आंदोलन" का लक्ष्य आंखों के सामने था इसलिए मैं कमाई पर कम और मौके को भुनाने पर ज्यादा ध्यान दिया हुआ था।
मुझे समाज में कहां खुद को समायोजित करके, परिवार के निमित्त, समाज के निमित्त, राष्ट्र के निमित्त व इन सबके परे इंसानियत के निमित्त सेवा करना है यह समझने का मौका मिला। मैं तमाम विघ्नों के बावजूद पढ़ाता रहा एवं सीखता रहा । मेरे दिमाग में "बचपन पढ़ाओं आंदोलन" का जो concept चल रहा था ....इस लक्ष्य ने मुझमें ईमानदारी का समावेश किया, मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए मैंने "Nakul Tuition center" की शुरुआत की। मैंने लक्ष्य निर्धारित किया था कि मुझे चम्पारण शताब्दी वर्ष के अवसर पर अप्रैल 2017 तक अपने project ""बचपन पढ़ाओं आंदोलन"" को जमीनी हकीकत में तब्दील कर देना है । और 2020 तक अपने बंजरिया पंचायत से अशिक्षा रूपी अंधियारे को ज्ञान यज्ञ के मशाल से दूर करना है । आज मेरा प्रोजेक्ट. ""बचपन पढ़ाओं आंदोलन-बच्चा पढ़ेगा तभी देश बढ़ेगा"" शैक्षणिक क्रांति के लिए तैयार है। मित्रों आज मेरे पास पढ़ने वाले बच्चों की संख्या भले ही कम है लेकिन यह मेरे जीवन लक्ष्य, सत्य निष्ठा का वह सत्य संकल्प है जिसका न मैंने सिर्फ सपना देखा अपितु उसे पूरा करके दिखाया है। यह तो सिर्फ शुरुआत मात्र है अभी तो हर अंधियारे को रौशन करना बाकी है । 2020 तक मुझे अपने बंजरिया पंचायत के उन तबकों के बच्चों को शिक्षित करने का लक्ष्य है जो वर्षों तक शिक्षा की मुख्य धारा से कटे रहें । ज्ञान यज्ञ का मशाल प्रज्वलित हो चुका है अब अज्ञानता रूपी अंधियारे काम नामों निशान नहीं रहेगा। अंधियारे को छंटना हीं होगा क्योंकि मैं उजियारे के लिए कृत संकल्पित हूं। और निश्चित रूप से "चारों तरफ खुशहाली होगी, खुशहाली से भरा पल होगा। दीप जलेंगे आशाओं के, आज से सुंदर कल होगा""

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डांस के क्षेत्र में कामयाबी के बाद अब फैशन और मॉडलिंग की दुनिया में भी अपना जलवा बिखेर रही हैं अनुमति सिंह

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जेल में 6 साल से बेगुनाही की सजा काट रही खुशी का हुआ इंटरनेशनल स्कूल में एडमिशन, कलेक्टर के साथ स्कूल पहुँची खुशी बिलासपुर (छग) जब एक पिता अपनी बेटी को खुद से विदा करता है तब दोनों तरफ से सिर्फ आंसू ही बहते हैं। आज बिलासपुर केंद्रीय जेल में ऐसा ही नजारा देखने को मिला। जेल में बंद एक सजायफ्ता कैदी अपनी 6 साल की बेटी खुशी( बदला हुआ नाम) से लिपटकर खूब रोया। वजह बेहद खास थी। आज से उसकी बेटी जेल की सलाखों के बजाय बड़े स्कूल के हॉस्टल में रहने जा रही थी। करीब एक माह पहले जेल निरीक्षण के दौरान कलेक्टर डॉ संजय अलंग की नजर महिला कैदियों के साथ बैठी खुशी पर गयी थी। तभी वे उससे वादा करके आये थे कि उसका दाखिला किसी बड़े स्कूल में करायेंगे। आज कलेक्टर डॉ संजय अलंग खुशी को अपनी कार में बैठाकर केंद्रीय जेल से स्कूल तक खुद छोड़ने गये। कार से उतरकर खुशी एकटक स्कूल को देखती रही। खुशी कलेक्टर की उंगली पकड़कर स्कूल के अंदर तक गयी। एक हाथ में बिस्किट और दूसरे में चॉकलेट लिये वह स्कूल जाने के लिये सुबह से ही तैयार हो गयी थी। आमतौर पर स्कूल जाने के पहले दिन बच्चे रोते हैं। लेकिन खुशी आज बेहद खुश

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छत्तीसगढ़। इस देश में हर वर्ग के हिसाब से हर इंसान की हैसियत के हिसाब से और हर इंसान की चॉइस के हिसाब से हर किसी का अपना एक डॉक्टर होता है।उच्च श्रेणी के उच्च वर्ग वाले लोगों के फैमिली डॉक्टर होते हैं। मध्यमवर्ग वालों के लिए चैरिटेबल, सरकारी या थोड़े से सस्ते वाले डॉक्टर होते हैं। गांव में पाए जाने वाले कंधे पर झोला टांग कर घूमने वाले भी देशी डॉक्टर होते हैं। जो किसी डॉक्टर के पास इंजेक्शन लगाने गोलियां दवाइयां देने का काम सीख कर गांव वालों की सेवाएं करते हैं। अब गांव वालों के लिए तो वह भी भगवान से कम नहीं है, जो मौके पर उनके कष्ट का निवारण कर उन्हें दर्द से निजात दिलवा देते हैं। साईकल पर गली में खड़े खड़े ही मरीजों की ओ पी डी से लेकर एम आर आई तक करने वाले गांव के डॉक्टर जब किसी मरीज को देखते हैं, तो मरीज उन से तरह-तरह के सवाल और अपने दर्द के बारे में तलब करते हैं। सिर में दर्द है,पीठ में दर्द है,कमर में दर्द है यह दवाई ले लो। क्या इससे काम चल जाएगा....? चिंता मत करो सारी बिमारीयों काम तमाम करेगी। इस तरह से बिना बेड पर लेटा कर इलाज कर देने वाले, मौके पर काम आने वाले इन झोला टां

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ थीम पर संपन्‍न हुआ न्‍यू बूगी - बूगी ऐकेडमी का वार्षिकोत्‍सव

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