नकुल की कलम से.....…...............✍
*प्राईवेट सेक्टर में सैलरी कम व शोषण ज्यादा है । समय की पाबंदी में खुद को मशीन बना देने पर भी, आपका मनोबल तब धराशाई हो जाता है जब आप में हजारों खामियां निकाली जाती है* ।
इस मशीनरी लाइफ में आप घर-परिवार,समाज सब से कट जाते हो और बदले में एक छोटी सी सैलरी....…....? ये छोटी सैलरी भी महीने भर के संघर्ष के बाद अमृत से कम नहीं लगती है, पर
पूर्णिमा के चांद से चांदनी ही कितनी...…....?
*मैं भी इसी मशीनरी जीवन के बीच अचानक से बदलते मौसम का शिकार हो गया हूं* ................. *बदलाव को समझना और बदलना आवश्यक है*
जीवन में बहुत से ऐसे क्षण आते हैं,जो बहुत कुछ सीखा जातें हैं । बदलते परिवेश में, स्वयं को निश्चित रूप से बदलना चाहिए। एक ही विकल्प को अंतिम समझ लेना उचित नहीं है ।
इस पूंजीवादी व्यवस्था में मध्यम वर्ग के लिए कुछ नया सोचना व करना बड़ा मुश्किल है । किंतु हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि *धीरू भाई अंबानी का सफर सौ रूपये के नोट से शुरू हुआ था*
कौन जानता था कि पटना जंक्शन पर रोड किनारे दवा बेचने वाला, पटना यूनिवर्सिटी का बी. ए. पास छात्र *मनीष* आज दवा कंपनी का मालिक होगा ।
*मैं भी धीरे धीरे इन चीजों को समझने लगा हूं और आज तबियत खराब हुई है तो बात समझ में ज्यादा आ रही है, क्योंकि रोज रोज दूसरे के लिए सोचता ही हूं पर आज स्वयं पर सोचने का अवसर मिला है*
सोचता हूं कि क्यों न इस मशीनरी दुनिया से परे कुछ किया जाएं ताकि अपनी क्षमता व ऊर्जा का नियंत्रित उपयोग किया जा सके।
धन्यवाद
नकुल_कुमार ( युवा आलोचक )
मोतिहारी पूर्वी चम्पारण बिहार
8083686563
8987826276
बचपन_पढ़ाओ_आंदोलन
Cashless Education
विजन_2020
NakulTuitionCenter
@NakulKumarSah94
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