शब्दों संग, शब्दों में
खोने लगा हूं।
आखिर मैं तेरा,
होने लगा हूं।
मेरी कविता में,
शब्दों की मोती है तू।
मेरे ख्वाबों की बाहों में,
सोती है तू।
कई शब्द, बेशब्द हुए,
अनाथ पड़े हैं।
कुछ गर्व से, कुछ
निर्लज्ज खड़े हैं ।
किसकी लज्जा मैं,
किससे छुपाऊं।
क्यों न नया,
कोई शब्द बनाऊं ।
*नकुल_कुमार "आलोचक"*
*मोतिहारी, पूर्वी चंपारण बिहार 845401*
*मोबाइल 8083686563*
Founder:-
*बचपन पढ़ाओं आन्दोलन*
*Cashless Education*
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