#पत्थरों_में_खो_गईं_मोरी_देवी_मईया ।
सुना हैँ... पहले बोलती थी,
कभी खुद, कभी किसी के शरीर मेँ आकर।
पर......पर अब तो जैसे खामोश रहने लगी हैं,
मोरी देवी मईया।
कई बार गया,
कभी पान-बताशा,
तो कभी नारियल-ईलायची लेकर,
लेकिन हर बार खामोश रही मोरी देवी मईया।
कितना मै रोया सिरपटक-पटक,
अपने आँशुओं से उनके चरणों को धोया,
एक बार भी न देखी,
मोरी देवी मईया।
मै दुबारा गया,
मैट्रिक,इण्टर, डिप्लोमा की डिग्री लेकर,
कुछ कह भी न पाई,
मोरी देवी मईया।
तभी अचानक...
अचानक एक आवाज मेरे चारो ओर गुँजने लगी।
मै...मै उस तरफ तेजी से दौड़ा,
उधर एक वृद्दा(बुढी औरत) मिली।
मैनें उसके चरण पकड़े और पूछा.
कि कहाँ गई,मोरी देवी भईया...?
कपकपाते स्वर में, उस वृद्दा ने कहा...
"कहाँ ढूँढते हो, इन बेज़ान पत्थरो में,
...अब बेटियों में बसती हैं,
तेरी देवी मईया।"
...लेखक:-
नकुल कुमार
मोतिहारी,पुर्वी चम्पारण
बिहार,845401
(भारत)
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