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Dharmendra KR singh Kanpur UP India

#तुम्हे_दो_रोटी_खिलाकर

तुम्हे दो रोटी खिलाकर
तुमसे बहुत कुछ ले गए हम.
तुम्हारा झोपड़ा झोपड़ा ही रहा
महलों के हो गए हम.

नीयत साफ़ थी
बरकत ने किवाड़ खटखटाये
झुर्रीदार हांथों ने रखा सिर पर हाथ,
तो नन्ही मुस्कानों ने
मेरे दिल के बाग़ सजाये.

न मालूम कब दे देते हो
अक्सर...
हमने दुआओं का असर देखा है,
वेश बदल बदल आती
और सताती
ज़िन्दगी का सफ़र देखा है.

जाने कब समझोगे?
तुम अपनी कमज़ोरियों पर खड़े
महलों के राज को.
तुम्हे बोलना नहीं आता
तुम्हारे उत्थान की बात करने वाले,
तुम पर राज करने वाले ही चुराते है
तुम्हारी कमी,
तुम्हारे दर्द और तुम्हारी आवाज़ को.

रही होगी ज़रूर
किसी ख़ुशी की तलाश
अरसा पहले बढ़ चले कदम तुम्हारी ओर.
बड़ी बड़ी महफ़िलों की शान देखी
नही भाया उनका शोर.
देखे तमाम दोहरे रंग.
खुद को उनके नाकाबिल पाया
नहीं सुहाए मुझे, कुछ ढंग.

करना दुआ खुदा से
'धरम' के करम को वो इतना नवाज़ दें
तुम्हे केवल पलते नही
संवरते भी देख सकें हम
तमाम दिलों को
सेवा और समर्पण का वो, साज दें.

आत्मकथ्य:  एक सत्य जो कौंधा मन में

हिलोर मेरे मन की : धर्मेन्द्र

Jgd
जयहिन्द
सत्यमेव जयते
7860501111
Dharmendra KR Singh
SAHWES
Sowing Education For India
Kanpur

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बॉलीवुड में राज करना चाहते हैं अमित कुमार भारती

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जब कलेक्टर के साथ स्कूल पहुँची खुशी... पढ़िए रितु साहू की रिपोर्ट

जेल में 6 साल से बेगुनाही की सजा काट रही खुशी का हुआ इंटरनेशनल स्कूल में एडमिशन, कलेक्टर के साथ स्कूल पहुँची खुशी बिलासपुर (छग) जब एक पिता अपनी बेटी को खुद से विदा करता है तब दोनों तरफ से सिर्फ आंसू ही बहते हैं। आज बिलासपुर केंद्रीय जेल में ऐसा ही नजारा देखने को मिला। जेल में बंद एक सजायफ्ता कैदी अपनी 6 साल की बेटी खुशी( बदला हुआ नाम) से लिपटकर खूब रोया। वजह बेहद खास थी। आज से उसकी बेटी जेल की सलाखों के बजाय बड़े स्कूल के हॉस्टल में रहने जा रही थी। करीब एक माह पहले जेल निरीक्षण के दौरान कलेक्टर डॉ संजय अलंग की नजर महिला कैदियों के साथ बैठी खुशी पर गयी थी। तभी वे उससे वादा करके आये थे कि उसका दाखिला किसी बड़े स्कूल में करायेंगे। आज कलेक्टर डॉ संजय अलंग खुशी को अपनी कार में बैठाकर केंद्रीय जेल से स्कूल तक खुद छोड़ने गये। कार से उतरकर खुशी एकटक स्कूल को देखती रही। खुशी कलेक्टर की उंगली पकड़कर स्कूल के अंदर तक गयी। एक हाथ में बिस्किट और दूसरे में चॉकलेट लिये वह स्कूल जाने के लिये सुबह से ही तैयार हो गयी थी। आमतौर पर स्कूल जाने के पहले दिन बच्चे रोते हैं। लेकिन खुशी आज बेहद खुश

भगवान से कम नहीं है.....इमरजेंसी वाले डॉक्टर साहब

छत्तीसगढ़। इस देश में हर वर्ग के हिसाब से हर इंसान की हैसियत के हिसाब से और हर इंसान की चॉइस के हिसाब से हर किसी का अपना एक डॉक्टर होता है।उच्च श्रेणी के उच्च वर्ग वाले लोगों के फैमिली डॉक्टर होते हैं। मध्यमवर्ग वालों के लिए चैरिटेबल, सरकारी या थोड़े से सस्ते वाले डॉक्टर होते हैं। गांव में पाए जाने वाले कंधे पर झोला टांग कर घूमने वाले भी देशी डॉक्टर होते हैं। जो किसी डॉक्टर के पास इंजेक्शन लगाने गोलियां दवाइयां देने का काम सीख कर गांव वालों की सेवाएं करते हैं। अब गांव वालों के लिए तो वह भी भगवान से कम नहीं है, जो मौके पर उनके कष्ट का निवारण कर उन्हें दर्द से निजात दिलवा देते हैं। साईकल पर गली में खड़े खड़े ही मरीजों की ओ पी डी से लेकर एम आर आई तक करने वाले गांव के डॉक्टर जब किसी मरीज को देखते हैं, तो मरीज उन से तरह-तरह के सवाल और अपने दर्द के बारे में तलब करते हैं। सिर में दर्द है,पीठ में दर्द है,कमर में दर्द है यह दवाई ले लो। क्या इससे काम चल जाएगा....? चिंता मत करो सारी बिमारीयों काम तमाम करेगी। इस तरह से बिना बेड पर लेटा कर इलाज कर देने वाले, मौके पर काम आने वाले इन झोला टां

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ थीम पर संपन्‍न हुआ न्‍यू बूगी - बूगी ऐकेडमी का वार्षिकोत्‍सव

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