जी हां आप सही देख एवं पढ़ रहे हैं । जैसा कि पुलिस प्रशासन की तरफ से गायत्री मंदिर घाट के पास विसर्जन का व्यवस्था की गई थी। तो वही कुछ नाविक मदरसे के सामने अथवा अन्य जगहों से जान जोखिम में डालकर नाव पर मूर्ति विसर्जन करने लगे। इतना देखते ही बिहार पुलिस का जवान दौड़ पड़ा और तब तक नाविक नाव पर मूर्ति लेकर दरिया के बीचो-बीच पहुंच चुका था। पुलिस वाले ने उसे वॉर्निंग दी।इससे जान माल की क्षति हो सकती है ।
खैर मूर्ति विसर्जन से मोती झील में बहुत ही ज्यादा कचरा पसर गया है । नगर परिषद के लिए यह सिरदर्द जैसा है, कि अब नए सिरे से मोती झील की साफ सफाई एवं कचरा को किस तरह से निकाला जाए ताकि फिर से मोतीझील मछलियों के लिए अच्छे आवास के रूप में प्राप्त हो सकें।
हिंदू धर्म एवं मान्यताओं के अनुसार प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के साथ पूरे विधि विधान के साथ पूजन की जाती है एवं उसके बाद प्रतिमा का विसर्जन का विधान है । प्रतिमा को पानी या जल स्रोत में ही विसर्जन इसलिए किया जाता है क्योंकि प्रतिमाएं मिट्टी की बनी होती है और मिट्टी मिट्टी में समाहित हो जाएं जिससे जल प्रदूषण आदि की समस्या उत्पन्न ना हो । किंतु जब से मूर्तियां, प्लास्टर ऑफ पेरिस अथवा अन्य केमिकल से बनने लगी है तब से जल प्रदूषण का स्तर बढ़ा है । साथ ही साथ जब लोग मूर्तियों का विसर्जन करते हैं तो उसके साथ ही साथ ढेर सारा कचरा जैसे फूल,माला, पूजन सामग्री,प्लास्टिक से बने बहुत सारे सजावट के सामान आदि पानी में फेंक देते हैं । जबकि हिंदू धर्म शास्त्रों में ऐसा कहीं नहीं कहा गया है कि नदी को प्रदूषित किया जाए। यहां तक कि जल को भी देवता एवं गंगा के रूप में पूजा का विधान है । किंतु समय परिवर्तन के साथ साथ वर्तमान पीढ़ी इन भारतीय रिवाजों को भूल गई है। जिससे सारा का सारा कचरा नदी के जल स्रोत में डाल देती है जिससे नदी जल सरकारी प्रदूषित हो रहा हैं ।।
जहां तक मोतिहारी के मोती झील का सवाल है तो यहां शहर का मैनहोल मोतीझील में गिरता है। मुर्गी आदि का व्यवसाय करने वाले लोगों द्वारा भी मोतीझील में कचरा डाल दिया जाता है । बहुत सारे लोग पूजा एवं कर्मकांड से बचे पदार्थों को भी जल में डाल देते हैं और मूर्ति विसर्जन झील में होने से जल प्रदूषण का खतरा बढ़ गया है एवं इसका अस्तित्व खतरे में पड़ गया है ।।
कुछ दिन पहले मोतिहारी के युवाओं के नेतृत्व मोतीझील आंदोलन चलाया गया। यह अभियान काफी हद तक सफल रहा क्योंकि वर्षों से उपेक्षित पड़े मोतीझील की साफ सफाई एवं रखरखाव संबंधी प्रश्न इस आंदोलन के बाद उठने लगे लगे एवं इस आंदोलन का ही प्रभाव था कि मोती झील से जलकुंभी को निकाला गया एवं आज मोतीझील पहले की अपेक्षा बहुत ही ज्यादा सांफ है । किंतु आए दिन फेंके जाने वाले कचरे से मोती झील में जो गंदगी पसर रही है उसको समय-समय पर साफ करने की आवश्यकता है ताकि मोती झील की वही खूबसूरती फिर प्राप्त हो सके । साथ ही साथ यदि मोती झील के दोनों तरफ से वृक्षारोपण कर दिया जाए तो फिर से मोतीझील के प्राकृतिक अस्तित्व को बचाया जा सकता है।
इसके साथ ही साथ मोतिहारी नगर परिषद को यह सोचना होगा कि मोतिहारी के शहर से निकला हुआ सीवरलाइन मोतीझील में ना गिरे ताकि मोतीझील के जल में ऑक्सीजन का लेवल अधिकतम रहे । जिससे जलीय जीव जंतु का अस्तित्व कायम रह सके।
Comments