📝नकुल कुमार की कलम से ...........पढ़िए जूनियर मदर टेरेसा "सुप्रिया भारती की कहानी
📝परिचय📝
बिहार के बांका जिले के बेलहर पंचायत में एक छोटा सा गांव है डुमरिया । चुकि बिहार का गांव है तो उसके लिए ज्यादा इमेजिन करना अपने आप में बेमानी है। किंतु उस गांव से आभाव के बीच भी कोई समाजसेवी अथवा विद्वान ना निकले ऐसा हो ही नहीं सकता।। ऐसे ही अभाव के बीच से निकली सुप्रिया भारती।
📝बचपन📝
बचपन से ही सुप्रिया भारती को पढ़ने एवं पढ़ाने का शौक था। किंतु मन की बात मन में ही दब कर रह जाती थी। पढ़ाई का यही लगन उन्हें आईएससी करने के लिए प्रेरित किया और 10th के बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए जमुई अपने बड़े पापा की बेटी के ससुराल में आकर करने लगी । जमुई विमेंस कॉलेज में रजिस्ट्रेशन के दौरान उसकी मुलाकात एक लड़की से हुई जिसने सुप्रिया भारती को बातों ही बातों में बताया कि उसके मामा जी अपने गांव में बच्चों को निशुल्क शिक्षा देते हैं एवं अपने क्षेत्र में निशुल्क शैक्षणिक जागृति पर कार्य कर रहे हैं । इतना सुना कि सुप्रिया भारती की जिज्ञासा सातवें आसमान पर थी। अब वह जाना चाहती थी कि आखिर उसकी सहेली के मामाजी कौन है ...?
आखिर में शैक्षणिक जागृति का कार्यक्रम वे कैसे चलाते हैं....?आखिर सोशल वर्क क्या होता है...? आखिर समाज सेवा में शिक्षा का समावेश कर वह अपने गांव एवं आसपास के क्षेत्रों के लड़कियों को कैसे जागरूक कर सकेगी.....?उन्हें कैसे शिक्षित कर सकेगी...?
📝जिज्ञासा को लगें पंख...📝
सुप्रिया भारती के इन्हीं जिज्ञासा को शांत किया उसकी उसी सहेली के मामा एवं अलक एजुकेशन के फाउंडर प्रेम सिंह दांगी ने । चुकी प्रेम सिंह दांगी पहले से ही जमुई एवं आसपास के क्षेत्रों में शैक्षणिक गतिविधि युद्ध स्तर पर चला रहे थे । उन्होंने अलक एजुकेशन का प्रोजेक्ट सुप्रिया भारती को बताया एवं समझाया । अलक एजुकेशन के शैक्षणिक प्रोजेक्ट को सुनने एवं समझने के बाद उस दिन सुप्रिया भारती को पूरी रात नींद नहीं आई । प्रत्येक करवट के साथ उसके मन में छटपटाहट थी कि कब सुबह हो और कब वह अपने गांव में जाकर इस प्रोजेक्ट को लांच करें । अपने गांव में शिक्षा की ज्योति जलाने की इसी ललक ने सुप्रिया भारती को जमुई से कोसो दूर उसे उसके गांव तिलहर डुमरिया खींच लाई।
📝 गांव में प्रचार प्रसार
अगले ही दिन लड़की सुप्रिया ने अपने घर के आस-पास के बच्चों एवं उनके परिवार वालों को सूचित कर के प्रचार प्रसार किया कि वह अपने यहां शिक्षा कार्यक्रम चलाने जा रही है । शुरू शुरू में 20 रुपया महीना फीस रखा । इतना प्रचार करने के बाद भी पहले दिन मात्र 3 ही बच्चे आए। सुप्रिया भारती को थोड़ी मायूसी हाथ लगी किंतु सुप्रिया के बुलंद इरादों ने सुप्रिया को आगे बढ़ने के लिए मोटिवेट किया एवं अगले दिन 10 बच्चे आए और तीसरे दिन तो ऐसा हुआ कि कमरे में तिल रखने की जगह नहीं थी ।। माजरा साफ था सुप्रिया भारती का संकल्प अपने पूर्ति की ओर अग्रसर हुआ और यह सब कुछ सुप्रिया भारती के नि:स्वार्थ सेवा भाव का ही परिणाम था। इन सबके बावजूद कुछ ऐसे परिवार थे जो ₹20 कारण अपने बच्चों को पढ़ने के लिए नहीं भेज रहे थे । अंततः सुप्रिया भारती ने उस ₹20 की औपचारिकता को भी समाप्त कर दिया एवं अब पूर्ण रूप से नि:शुल्क शैक्षणिक कार्यक्रम चलाने लगी। सुप्रिया भारती की इस व्यवस्था से उसके घर के लोग खुश नहीं थे। परिवार से ही विरोध की लहरे उठने लगी। किंतु चौतरफा विरोध झेलने के बाद भी सुप्रिया भारती अपने बुलंद इरादे से अपने कर्तव्य पथ की ओर अग्रसरित रही।।
📝प्रसिद्धि📝
सुप्रिया भारती से जुड़ा एक अन्य वाक्य यह है कि एक बार उसके निशुल्क शिक्षण संस्थान पर पढ़ने वाली एक छात्रा अनुपस्थित थी क्योंकि वह छात्रा कक्षा में अच्छी थी पूछने पर पता चला कि स्कूल में खेलने के क्रम में एक छात्रा का हाथ टूट गया है इसलिए वह नहीं आई है जैसे ही सुप्रिया ने हाथ टूटने की बात सुनी सारा काम छोड़कर वह छात्रा के घर पहुंच गई पूछने पर मालूम चला कि उस छात्रा के माता-पिता इतने गरीब है कि उसके हाथ पर प्लास्टर भी नहीं करा सकते किसी तरह से कपड़ा बांध कर काम चला रहे हैं फिर क्या था सुप्रिया भारती पहुंची अपने घर उठाया अपना गुल्लक एवं सारा पैसा लाकर अपनी छात्रा के माता-पिता को दे दिया ताकि उस छात्रा का समुचित इलाज हो सके। जहां आज के जमाने में लोग अपनी टूटी चारपाई भी नहीं देना चाहते हैं वही सुप्रिया भारती का अपनी पॉकेट मनी का देना उसकी दरियादिली का हीं परिचायक है। सुप्रिया भारती की इसी दरियादिली एवं सेवा भाव के कारण उस क्षेत्र के लोगों ने अब सुप्रिया भारती को जूनियर मदर टेरेसा तक कहना शुरू कर दिया है।।
📝 वर्तमान📝
वर्तमान समय में सुप्रिया भारती गांव में ही रहकर स्नातक द्वितीय खंड की परीक्षा दे रही है यह पूछे जाने पर कि आगे सरकारी नौकरी करनी है कि नहीं पर उनका सीधा-सा जवाब यह है कि.... नहीं ।।
बकौल सुप्रिया भारती ""मैं सरकारी सेवा में गई तो इससे सिर्फ मेरा भला होगा किंतु यहां रह कर मैं अपने क्षेत्र की हजारों लड़कियों का जीवन सवार सकती हूँ।।""
सुप्रिया भारती का अपने कर्म के प्रति निस्वार्थ रूप से त्याग और समर्पण का यही भाव है,जो धीरे धीरे उन्हें प्रसिद्धि दिला रहा है । वे अपने क्षेत्र की रोल मॉडल बन चुकी है एवं उनके शैक्षणिक गतिविधि को ही देखते हुए अब गांव के अन्य लोग भी अपनी बेटियों को पढ़ाने लगे हैं । बकौल सुप्रिया भारती "गांव की सारी लड़कियां पढ़े-लिखे यही मेरे जीवन का लक्ष्य है"
(यह इंटरव्यू सुप्रिया भारती की नकुल कुमार से फोन से बातचीत पर आधारित हैं।
नकुल कुमार( स्वतंत्र पत्रकार )
सम्पर्क:8083686563,
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इसे सेकेंड मदरट्रेस के नाम से भी जानी जाति है।