#मैं_आज़ाद_पांडेय_बोल_रहा_हूँ।
अगर पूरा पढ़ लेंगें तो आप बहुत कुछ सोचने पर मजबूर जरूर हो जायेंगें।
मैं आज़ाद पांडे बोल रहा हूँ। मेरे दो हाथों को काटने की कोशिश की गयी है। यूं तो मेरे 100 हाथ हैं लेकिन प्रियेश मालवीय और प्रणव द्विवेदी मेरे दो ऐसे हाथ हैं जिनपर आई आंच मुझे ख़ास तकलीफ देती है। मेरे इन दो भाइयों का परीक्षा का समय चल रहा है। ये परीक्षा की तैयारी कर रहे थे। इनके छात्रावास में 03 दिन से बिजली पानी सब गुल था। ये शिकायत कर कर के थक हार चुके थे। इन्होंने अंत में धरना प्रदर्शन किया। लेकिन इनकी किस्मत खराब थी कि उसी वक़्त किसी अराजक तत्व ने विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर साहब के घर पर ढेला पत्थर चला दिया। प्रॉक्टर साहब इतने आगबबूला हुए कि मेरे इन साथियों को ही फर्जी में फंसा दिया और ह्त्या के प्रयास जैसा गंभीर मुकदमा दर्ज कराकर इन्हें विश्वविद्यालय से निलंबित भी कर दिया।
ज़रा गौर फरमाइए। आज के समय में जब मेरे इन दो भाइयों पर फर्जी गंभीर धाराएं लगीं हैं तब कई ढोंगी लोग फर्जी में मुंह बनाकर मेरे पास सांत्वना देने आ रहे। कई लोग मेरे सामने आदरणीय प्रॉक्टर साहब और विश्वविद्यालय प्रशासन को जम कर गालियां दे रहे हैं। कई लोग हर तरह की सहायता करने का वचन दे रहे हैं। कई लोग मामले को जातिवादी रंग देने का कोशिश कर रहे हैं। कई लोग इसमें भी अपना राजनितिक फायदा उठाने की मंशा पाल के बैठे हैं। मैं देखूँगा कि कितने साथ आते हैं ये समय बताएगा।
लेकिन आज़ाद इन सब से अलग है। मेरा साफ़ कहना है कि अगर विश्वविद्यालय प्रशासन ने 15 दिन के अंदर मेरे इन भाइयों के खिलाफ मुकदमा वापस नहीं लिया तो आज़ाद सब कामधंधा छोड़ कर विश्वविद्यालय प्रशासन को नंगा करने के 24 घण्टे वाले मिशन पर लग जाएगा।
अभी खबर मिली है कि शिक्षक संघ इस मामले पर एक्टिव हो गया है। फटाफट शिक्षक आवास परिसर में सुरक्षा, बिजली, पानी, दीवाल घेरेबंदी आदि आदि का निर्णय हो गया। स्पेशल कमेटी भी बन गयी। यही नहीं मेरे साथियों की एक हफ्ते के अंदर गिरफ्तारी का भी दबाव बनाने की बात कही गयी। वाह रे विश्वविद्यालय प्रशासन। छात्रों के दिए शुल्क के पैसे बेकार हैं।
समस्या हुई छात्रों को,
प्रदर्शन किया छात्रों ने,
मुकदमा हुआ छात्रों पर
और अब सुविधा मिलने की बारी आई तो आपने सब डकार लिया।
मैं पूछना चाहता हूँ विश्वविद्यालय के शिक्षक संघ के आदरणीय पुरोधाओं से...
जवाब दीजिये गुरूजी...
*आप तो सैलरी पाते हैं, पर क्या छात्रों को आप जैसी सैलरी मिलती है?
*आपको तो VVIP मकान मिलता है, क्या छात्रों को ऐसे आवास मिलते हैं?
*आपका परिवार परिवार है, छात्रों का परिवार परिवार नहीं है?
*आपकी बिजली पानी की समस्या तुरन्त हल हो जाती है, छात्रों की क्यों नहीं होती?
*आपलोग अपने भले के लिए शिक्षक संघ बना लेते हैं, छात्रसंघ पर आपको बड़ी आपत्ति है। क्यों?
*जब विश्वविद्यालय के अधिकारी आप, कर्मचारी आप, कमेटी मेंबर आप, विवि प्रशासन के सदस्य आप, हर जगह आप ही आप तो छात्र क्या है? डरपोक गाय? या दुम हिलाता कुत्ता?
*आपकी इमरजेंसी बैठक में कुलपति जी भीगी बिल्ली की तरह शामिल होते हैं, और छात्रो को अपनी इमरजेंसी समस्या कहनी होती है तो वो फरियादियो की तरह बड़े लाट साहब के चेंबर के बाहर इंतजार करते है। ऐसा क्यों?
मैं सड़क पर उतर कर काम करता हूँ। मैं सड़कछाप हूं और सड़कछाप लोगों के लिए अधिकारो की जंग लड़ता हूँ। मैं साफ़ कहता हूँ कि मुझसे अन्याय बर्दाश्त नहीं होता। मेरे साथियों के साथ अन्याय हो रहा है और इसे सुधारा जाना चाहिए, वरना मैं खुली चेतावनी देता हूँ, मैं विश्वविद्यालय प्रशासन और शिक्षक संघ के पुरोधाओं को नंगा कर के रख दूंगा। मेरे पास बहुत माल मसाला दबा पड़ा है। मैं शान्ति चाहता हूँ और न्याय चाहता हूँ।
इस मामले में समझौता करना मेरी प्राथमिकता है, अगर विश्वविद्यालय प्रशासन ने बीच का रास्ता समय पर नहीं निकाला और निर्दोष छात्रों को फर्जी मुकदमे से मुक्त नहीं किया तो मैं साफ़ कहता हूँ मैं अपने भाइयों की रक्षा के लिए इस मामले में कूद जाऊंगा और पुरोधा गुरूजी लोगों के सतकर्मो का खुला किताब निकाल कर उनको भरपूर नंगा कर दूंगा। मैं बता दे रहा हूँ कि ये मैं धमकी नहीं दे रहा मैं गंभीर चेतावनी दे रहा हूँ। अगर मैं इस मामले में कूद गया तो विश्वविद्यालय प्रशासन को हर तरह से गंभीर परिणाम भुगतना पड़ेगा क्योंकि मैंने अपना जीवन फूँक के और देश दुनिया की परवाह को ठेंगे पर रखकर अकेले अपने दम पर समाज का काम करता हूँ।
और मैं गुस्से में आकर थूक भी दू तो आग लग ही जाती है।
इसलिये मैं अपनी ये भड़ास आखिरी बार बोल रहा हूं।
नोट- क्योंकि मैं आज़ाद पांडेय बोल रहा हूँ।
इसलिए दोषियों को बचाने की गोरखपुर विश्वविद्यालय की परम्परावादी चाल में किसी आम छात्र को फंसाने नही दूँगा।
#शेयर_प्लीज.....
Note-:-Copied from facebook wall of Azad Pandey.
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