अपनी नज़रों में गिर गया हूँ मैं.
न मालूम राहें कौन सी थी
किधर किधर गया हूँ मैं,
बच के चला तौहमतों से
अपनी नज़रों में गिर गया हूँ मैं.
रास्ते बड़े कठिन हैं
सुनता आया हूँ मैं ज़मानों से,
पर पसार उड़ चला हूँ
बात करता हूँ आसमानों से.
कबूतरों सी रही उड़ान मेरी
बाजों से घिर गया हूँ मैं,
बच के चला मैं तौहमतों से
अपनी नज़रों में गिर गया हूँ मैं.
ज़िंदगी कोई सिनेमा तो नही
तीन घन्टों में गुज़र जाती जो,
कहने को चार दिन की है
तकती आँखे भी कुछ बताती जो.
पानी आँखों का खरीदता ही रहा
जिधर जिधर गया हूँ मैं,
बच के चला तौहमतों से
अपनी नज़रों में गिर गया हूँ मैं.
अब ज़िद पे अड़ गया हूँ
पीछे ज़िंदगी के पड़ गया हूँ,
ज्यादा मौत से भी क्या देगी
अब खुद से लड़ गया हूँ.
मुश्किलों से करके प्यार 'धरम'
बिखर बिखर गया हूँ मैं
बच के चला तोहमतों से.
अपनी नज़रों में गिर गया हूँ
Dharmendra KR Singh
7860501111
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SAHWES
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