"शुजा ख़ावर" की याद में
19 जनवरी को " हम-क़लम की तरही शेअरी निशस्त (काव्य गोष्ठी)
शुजाउद्दीन साजिद उर्फ शुजा ख़ावर जदीद उर्दू शायरी का एक अहम नाम है।उनका जन्म 24 दिसंबर 1948 को हुआ और 19 जनवरी 2012 को हृदय-गति रुकने के कारण दिल्ली में उनका देहांत हो गया।शुजा ख़ावर भरतीय पुलिस सेवा के अधिकारी थे।वर्ष 1994 में उन्होंने नौकरी से त्याग-पत्र दे दिया।
शुजा ख़ावर ने ग़ज़लों में लफ़्ज़ों को बरतने का नया सलीक़ा ईजाद किया।उन्होंने अपनी ग़ज़लों में बहुत से ऐसे अल्फ़ाज़ का खूबसूरत इस्तेमाल किया है जिन्हें उर्दू के तथाकथित विद्वान आलोचक और रचनाकारों ने मतरूक(निषिद्ध) क़रार दिया है।नई नस्ल के ज़्यादातर रचनाकार शुजा ख़ावर के नाम से परिचित नहीं हैं।शुजा ख़ावर के यहां भी वही जज़्बात और महसूसात हैं जो फ़ितरी (प्राकृतिक)तौर पर हर इंसान के अंदर होते हैं लेकिन शुजा ख़ावर ने उनको नए पानी से धो-चमका कर दिलकश और नए तख़लीक़ी अंदाज़ में पेश किया।शुजा का लेहजा इनका अपना है, वह कहीं से उधार लिया गया नहीं है।उनके मिज़ाज का अक्खड़पन उनकी शायरी में जा-ब-जा मिलता है।उनकी शायरी की जड़ें उनके अंदर ही पैवस्त हैं।शुजा ख़ावर के कुछ अशआर आप सब के हुज़ूर पेशे ख़िदमत हैं -
तुझे ऊंची उड़ानों के सफ़र में मौत आएगी
पारिन्दे देख बिल्कुल साफ़ तेरे पर पे लिखा है
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इतनी बड़ी दुनिया में मैं कब से अकेला हूं
ऐ रब्बे करीम अपने बंदों से मिला मुझको
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क़लम में ज़ोर जितना है जुदाई की बदौलत है
मिलन के बाद लिखने वाले लिखना छोड़ देते हैं
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एक हुनर है चुप रहने का
इक ऐब है कह देने का
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हम अपनी नज़रियात को ठुकराए हुए हैं
वो हमको इसी बात से अपनाए हुए हैं
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मुहज़्ज़ब दोस्त आखिर हम से बरहम क्यों नहीं होंगे
सगे इज़हार को हम भी तो खुल्ला छोड़ देते हैं
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शुजा ख़ावर के मजमुए(संकलन)
●उर्दू शायरी में ताजमहल(1968)संपादन
●दूसरा शजर(1970)नज़्म
●वावैन (1982)ग़ज़लें/नज़्में
●मिसर-ए-सानी(1987)ग़ज़लें
●ग़ज़ल-पारे(1990)चुने हुए अशआर का तीन लिपियों में संग्रह
●रश्के फ़ारसी(1993)ग़ज़लें
●बात(1993)
●अल्ला हू(2000)
शुजा ख़ावर के मजमुए कलाम का उर्दू की पूरी अदबी दुनिया में एक शोर रहा है।
चंपारण की अदबी तंज़ीम "हम-क़लम" तरही शेअरी निशस्त(तरही काव्य गोष्ठी) का सिलसिला शुरू कर रही है।इस कड़ी में पहली निशस्त दिनांक 19 जनवरी 2018 को शुजा ख़ावर के यौमे वफ़ात(पुण्य तिथि)पर दिन के 02 बजे से क़ब्रिस्तान रोड, सलाम नगर स्थित बीकन इंटरनेशनल स्कूल में आयोजित है।इस गोष्ठी में शुजा ख़ावर की ग़ज़ल का मिसरा " पारिन्दे पर शजर रखा हुआ है " मिसर-ए-तरह के तौर पर तय किया गया है।शुजा ख़ावर का मुकम्मल शेअर इस तरह है -
मेरे हालात को बस यूं समझ लो
पारिन्दे पर शजर रखा हुआ है
* शजर अर्थात पेड़
इस तरही शेअरी निशस्त(तरही काव्य गोष्ठी) में आप सभी रचनाकार और श्रोता बंधु सादर आमंत्रित हैं।
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