लोहड़ी पर्व को हर वर्ष 13 जनवरी को पंजाब में मनाया जाता है। यह पश्चिम भारत का प्रसिद्ध त्योहार है ।सरहद के दोनों तरफ असीम उत्साह के साथ लोग इसे मनाते हैं । देश बट गया ,धर्म बदल गया, सरहद भी बंद कर दिया जाता है किंतु नव वर्ष का यह पर्व देश, जाति, धर्म की सीमाओं को लांघते हुए दोनों ओर मनाया जाता है । इस दिन दुल्ला भट्टीवाले का गीत
अलाव जलाकर ढोल की थाप देते हुए लोग गाते हैं ।
"सुंदर मंदिर गई ऐ,
सुंदर मंदिर गई ऐ।
तेरा कौन विचारा ऐ,
दुल्ला भट्टीवाला ऐ।
दुल्ले दही बवा़ई ए ,
झोली शकरपाई ए।
दुल्ला भट्टीवाला ऐ।।"
पंजाब में अशांति और विद्रोह के चलते फतेहपुर सीकरी से सम्राट अकबर अपनी राजधानी लाहौर लाए थे । उनके कारिंदे सुंदर नाम की लड़की को उठा लेना चाहते थे । अब्दुल्ला खां उर्फ़ दुल्ला जो मुस्लिम राजपूत थे। उसे सुरक्षा प्रदान किए,उसकी शादी कराई और इसप्रकार पहले से चली आ रही परंपरा में इस लोकख्यात वीर शहीद का नाम भी अविभाज्य रूप से जुड़ गया ।
📝आखिर कौन थे दुल्ला भट्टी वाला...📝
दुल्ला भट्टी वाला का मूल नाम अब्दुल्ला खान था यह मुस्लिम राजपूत थे क्योंकि वह पंजाब के लाहौर के समीप भट्टी वाला गांव के रहने वाले थे इसलिए कालांतर में लोग उन्हें अब्दुल्ला खां भट्टीवाला कहने लगे एवं धीरे-धीरे यही अब्दुल्ला खां भट्टीवाले दुल्ला भट्टीवाला के नाम से प्रसिद्ध हुए
लोहड़ी और दुल्ला भट्टीवाला (अब्दुल्ला खां) को लोहड़ी के अवसर पर उनकी स्मृति को शत शत नमन और शत्-शत् सलाम है।
नोट: उपरोक्त तथ्य बिहार के मशहूर किसान नेता व जलेस के वर्तमान अध्यक्ष श्री ध्रुव त्रिवेदी जी से फ्रीलांसर नकुल कुमार की बातचीत पर आधारित है।
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