मुक्तक:---
1
जनम जनम के बन्धन कहते,
तुमको नाच नचायेंगे,
जिस अतीत की लाये गठरी,
उसी पे हम इठलायेगें,
आने वाली कल की रेखा,
वर्तमान से अलग नही,
साधू साधक 'भ्रमर' वियोगी,
मरम में गोेते खायेंगे।।
2
चाहत के हैं सभी दिवाने ,
राहत वाला कोई नहीं,
बिषय प्रतिष्ठा गान सुनाती,
ज्वाला मन की खोई नहीं,
राग द्वेष का नगर बसा है,
'भ्रमर' क्रन्दना छोड़ दे,
दूषित कर न मन की रागिनी,
गुनने वाला कोई नहीं।।
विजय नारायण अग्रवाल 'भ्रमर'
रायबरेली 5 जुलाई 2018
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