:अर्चना:--
ब्रह्म महूरत में उठ जिसने,
मॉं को किया प्रणाम जी।
जनम कृतारथ जगमें उसका,
सुखमय आठोयाम जी।।
मोहपास में जकड़ा यौवन ,
सदचिन्तन को हरता है,
हटकर प्रानी सत्य मार्ग से ,
अपने मन की करता है,
अहम् त्याग प्रभु सुमिरनकरलो,
मिले सुखद विश्राम जी---जनम
नर्क-स्वर्ग सब इसी जगत में
कर्म द्वार से मिलते हैं,
दाम-काम अनुमोदित करके,
कदम मिलाकर चलते हैं,
ध्यान धुरी पर रखलो साधक,
हिया समाते श्याम जी ---जनम
सबसे अच्छा ज्ञान योग जो,
दिशि औ ऱाह बताता है,
अतुलित बल के हनूमान का,
पुरुषारथ दिखलाता है,
यही सुधायें क्लेश भाव को,
देती पूर्ण विराम जी---जनम
ग्रसित मंत्रणा अरुणोदय से,
बैभव विभव निहाल है,
बागीश्वर उकसाओ मन को,
सुप्त चेतना भाल है,
लय से लहक रही रस चकरी,
व्याकुलता को थाम जी----
क्षरण करे नहिं 'भ्रमर'अर्चना,
कारण करण सकाम जी----
जनम कृतारथ जग में उसका,
सुखमय आठों याम जी।
ब्रह्म महूरत में उठ जिसने,
मॉं को किया प्रणाम जी।।
रचयिता प्रेषक :--
विजय नारायण अग्रवाल 'भ्रमर'
रायबरेली उ०प्र०30 जून2018
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