दोहा:---
लौकिक सुख की कामना,
संग रखती संताप।
लेकिन इश्वर प्रार्थना,
हरती भौतिक पाप।।
मुक्तक:--
1
नदी ऐक पर दो,
किनारे हैं हम तुम,
जनम से भरम के,
दुवारे हैं हम तुम,
बिषय की विपुलता ,
कहानी सुनाती,
कहीं ना कहीं पे,
सहारे हैं हम तुम।।
2
विन बाती का मेरा शिवाला,
मूरत बहुत पुरानी है,
अपने को मैं सुन्दर कह दूँ,
अकुलाहट बेमानी है,
फिर भी मैंने साहस करके,
मन का दिया जलाया है,
सहिष्णुता में प्यास भरी है,
'भ्रमर' नयन में पानी है।।
विजयनारायण अग्रवाल'भ्रमर'
रायबरेली 01जुलाई 2018
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