NTC CLUB MEDIA / 02 JULY 2018
फैला रखी है क़ुदरत ने
मंज़र की दोशीज़ा चादर
बूढ़ी धरती इस मौसम में
अपनी जवानी काट रही है
तोहफ़े में बूढी धरती को
मंज़र क्या खुशरंग मिले हैं
सागर तट पर पाम खड़ा है
मौज में अपनी बांहें खोले
और ज़मीं पर नर्म-मुलायम
सब्ज़ा की क़ालीन बिछी है
गुलमोहर के अंगारों पर
अपनी आंखें सेंक रहा हूँ
दरिया की अंगड़ाई मन में टूट रही है
पेड़ों ने पौधों ने अपना
सूखा लिबास उतार दिया है
हर मंज़र धोया-मांजा है
जैसे सब कुछ नया नया है
नये कंवारे इस मौसम में
मन से मायूसी की पपड़ी अलग करूँगा
खुरच-खुरच के
उम्मीदों की चाक पे चढ़ के
नया बनूँगा
दुख के कपड़े चेंज करूँगा
०००
© गुलरेज़ शहज़ाद
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