--: सहज निवेदन:--
आराध्य दो सहारा ,
हम द्वार तेरे आये।
मझधार बीच नइया,
भवितव्यता सताये।।
जग की प्रीति देखी,
सब कामना में ढूबे,
कोई मिला न ऐसा,
जो वासना से ऊबे,
भावों की द्वन्द रेखा,
महका रही बिषय को,
निस्तारना के खातिर ,
उल्टा रही समय को,
सूरत मुकुल तुम्हारी,
लोकेशना हटाये,
बैभव बिभव से मन के,
सम्बन्ध डगमगाये।।
आराध्य दो सहारा ,
हम द्वार तेरे आये।
मझधार बीच नइया,
भवितव्यता सताये।।
'भ्रमर'रायबरेली 2जुलाई 18
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