दोहा:---
बद अच्छा बदनाम बुरा,
'भ्रमर' किसे समझाय।
बिना तेल दीपक बुझे,
दोष वायु पर जाय।।
2
ज्ञान बहत है सड़क पर,
धरहु ध्यान चहुँ ओर।
मन को दीखत सभी कुछ,
जुँ चाहे तु बटोर।।
मुक्तक:---
जब कामना हृदय की,
बलभद्र होती है,
तब वासना बिषय के,
सन्सर्ग बोती है,
पर 'भ्रमर' उसको नही,
इस बात का पता,
कि साधना में साध्य की,
अभिव्यक्ति सोती है।।
या
कि धारणा अनुरक्त की,
छल्ले पिरोती है।।
या
कि अस्मिता भवतत्व की,
परिपक्व जोती है।।
या
कि धर्मिता अमरत्व के,
पल्लव संजोती है।।
या
कि कल्पना सेआत्म की,
अणुशक्ति खोती है।।
रचयिता प्रेषक:---
विजय नारायण अग्रवाल 'भ्रमर'vtttt
.vnbhrmar2244@gmail.com
रायबरेलीउ०प्र०29 जून 2018
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