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इतनी गरीबी ना देना कि,
पलूं किसी के आंगन में।।
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रोऊ गिड्गिडाऊ या भूखे सो जाऊं,
अपने मां के आंचल में।।
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बचपन क्यों मैं खो रही हूं,
क्या कहूं क्यों मैं रो रही हूं ।।
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मां का आंचल भाई का तकरार,
बचपन की मस्ती ढेर सारा प्यार।।
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ना जाने क्यों खो रही हूं
क्या कहूं क्यों मैं रो रही हूं।।
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उम्मीद तो नहीं,
पर आंखों में सपने हैं ।।
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कोई तो मेरे परिवार को समझाइएगा,
मेरे दिल का हाल बतलायेगा।।
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एक न एक दिन कोई आएगा ।
और मुझे यहां से ले जाएगा ।।
गरीबी के जंजीर को तोड़ पाऊंगी ,
हौसले का पंख फैला उड़ जाऊंगी ।
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जाऊंगी कि उन्मुक्त गगन में,
रह पाऊंगी अपने घर में ।।
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📝युवा कवि विक्रम सागर
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