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पत्रकार से नाखुश: आजाद पांडे

⚡⚡NTC CLUB MEDIA/GORAKHPUR ⚡⚡

गोरखपुर के प्रख्यात समाजसेवी एवं स्माइल रोटी बैंक के फाउंडर आजाद पांडे ने अपने ऊपर लगे तमाम आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए अपने Facebook पोस्ट पर अपने विषय में एक लंबी चौड़ी पोस्ट लिखी जिसमें उन्होंने अपने परिवार का स्टेटस अपने एक्सीडेंट की बातें उसके बाद जीवन बदलने की बातें एवं अपना जीवन समाज के निचले तबके के बच्चों के विकास के निमित्त समर्पित करने भीख मांगने की प्रथा पर अंकुश लगाने बच्चों में बढ़ रही नशाखोरी आदि को रोकने एवं शिक्षा से वंचित बच्चों को शिक्षा मुहैया कराने के निमित्त स्माइल रोटी बैंक की स्थापना एवं उद्देश्य आदि विस्तार से लिखी है ।                     अब हम आपको बताते हैं की घटना क्या है.... आजाद पांडे अपनी पोस्ट में लिखते हैं कि किसी पत्रकार ने 2 चार  मिनट के एक वीडियो के माध्यम से स्माइल रोटी बैंक को नकारात्मक रूप से प्रचारित-प्रसारित किया एवं आजाद पांडे की छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की है आइए सबसे पहले पढ़ते हैं कि आजाद पांडे ने अपने Facebook वाल पर क्या लिखा हैं......?🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴

बकौल आजाद पांडे  मैं एक अच्छे खासे संपन्न परिवार से ताल्लुक रखता हूँ। मुझे दौलत और शोहरत की भूख नहीं। मैं चाहूँ तो आराम से अपने घर बैठ कर एसी की ठंडी हवा खाकर चैन और सुकून की ज़िन्दगी गुज़ार सकता हूँ। गाँव में खेती बाड़ी और पक्के मकान में अपनी ज़िन्दगी आराम से गुज़ार सकता हूँ। लेकिन मैं ऐसा नहीं करता... मैं क्या करता हूँ आपको बताना चाहता हूँ। आज से लगभग 10 साल पहले मेरा भयानक एक्सीडेंट हुआ। उस दुर्घटना में मेरा बचना नामुमकिन हो गया। न जाने कौन सी किस्मत लेकर मैं पैदा हुआ था कि भगवान ने मुझे नया जन्म दे दिया। उस दिन से मैंने संकल्प लिया था कि मैं भले एक मेडिकल केस बनकर ज़िंदगी गुज़ार लूँगा लेकिन मेरी ज़िन्दगी अब केवल समाज की सेवा में कटेगी। मैं गरीबों के आंसू और मासूम बच्चों के चेहरे की उदासी को दूर करने की भावना और संकल्प के साथ लग गया। मेरा काम छोटे-छोटे प्रयासों के साथ शुरू हुआ। मैंने पूरे उत्साह और ईमानदारी से कोशिश शुरू की। मुझे कई अच्छे लोग मिले जिन्होंने मेरी बड़ी सहायता की। मेरे काम का सिलिसिला शुरू हो गया। 🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴

मैंने अपने घर की संपदा से यह काम पिछले कई वर्षों तक बुरे हालात का सामना करते हुए भी जारी रखा। मेरे ऊपर कई बार जानलेवा हमले हुए, कई लोगो ने मुझे धमकियां दी, मुझे कई जगह भयंकर बेइज्जती, अपनों के चुभने वाले ताने, लोगों की दुत्कार और साथ काम करने वालों से गहरे धोखे खाने को भी मिले। इस बीच मेरा हौसला गुज़रते वक़्त के साथ कभी पस्त पड़ जाता तो कभी बेहद मज़बूत हो जाता। मेरे बारे में कई लोग समाज में अच्छी बातें कहते तो कई लोग मेरे बारे में बहुत कुछ बुरा भला भी कहते। सामाजिक कार्य करने के दौरान कई सकारात्मक और प्रेरक लोग भी मिले और कई ऐसे भी मिले जिन्हें मेरी मेहनत और मेरी प्रतिष्ठा से घोर ईर्ष्या हुई और वो निरन्तर षड्यंत्र में लगे रहे। खैर मैंने अपनी तरफ से कभी किसी का बुरा नहीं चाहा क्योंकि मुझे पता है मैं भगवान का पवित्र काम कर रहा हूँ और ऐसे लोग जिनके किरदार में ईर्ष्या, नफरत और नकारात्मकता भरी हुई है उनको उनका काम मुबारक करता हूँ। मुझे इतना पता है कि मेहनत और किस्मत पर भले कुछ देर के लिए बादल छाएं लेकिन एक दिन सफलता और शोहरत की धूप निकलती ज़रूर है।🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴

आज का मेरा यह सन्देश मेरा दर्द है... सुबह 06 बजे घर से एक कप चाय पीकर बेसुध घर से निकल पड़ने का दर्द, पूरे दिन मासूम बच्चों को नशे, भिक्षाटन, कूड़े के ढेर से निकालने की ज़िद पूरी करने के एवज में खुद को गला देने का दर्द, घर परिवार छोड़कर समाज के लिए भागदौड़ करना और लोगों के आगे बच्चों के भलाई के लिए अपना स्वाभिमान गिरवी रख कर भीख मांगने का दर्द...

आज मेरे साथ छलावा हुआ... कोई बात नहीं। यह कौन सी नई बात है भला? लेकिन मेरे ऊपर एक स्थानीय समाचार चैनल ने जो कथित आरोप लगाये हैं वो आरोप हैं बच्चों के नाम पर चंदे उगाही करने और उनके हक़ के पैसे को दबाकर खा जाने का आरोप....🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴

मेरे लिए यह आरोप केवल चोरी का आरोप नहीं है बल्कि मेरे लिए यह आरोप वर्षो से कमाई इज्जत और भरोसे के क़त्ल का आरोप है। मैं हालांकि इस बात पर कोई सफाई नहीं देना चाहता लेकिन कुछ बातें ज़रूर कहना चाहता हूँ...अगर आज़ाद पांडे को कमाई करना होता तो वो बच्चों को स्मैक सुंघा कर उनसे भीख मंगवा कर शान्ति से अपना रैकेट चलवाता, उसे उससे ज़्यादा और कहीं आसान कमाई होती। आज़ाफ़ भाई को कमाई करनी होती तो वो बच्चों से कबाड़ बिनवा कर, उनसे मज़दूरी करवा कर और उनकी तस्करी करके कहीं ज़्यादा आसानी से पैसे कमा लेता और किसी को गन्ध भी नहीं लगती। मैं पूछना चाहता हूँ मैंने अगर समाज के वंचित बच्चों के उद्धार का सपना देखा है और उनके लिए दिनरात मेहनत कर रहा हूँ तो मेरा कौन सा अपराध है? समाज के काम के लिए भीख मांगना कत्तई आसान नहीं है। आरोप लगाने वालों और मुझे बदनाम करने वालों से कहना चाहता हूँ समाज की सेवा के नाम पर किसी के जेब से 100 रूपये निकलवा कर लाएं... 🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴

-कितनी मशक्कत करनी पड़ती है और लोगों को अपना काम दिखाना पड़ता है तब जाकर कोई आपको एक नए पैसे का सहयोग करता है। आपमें हिम्मत है तो तो आ जाओ मैदान में दिखा दो समाजसेवा के नाम पर भीख मांगकर और उसमें घोटाला करके। मैं पिछले 10 सालों से गोरखपुर का जाना माना भिखारी हूँ। मैं NGOबाजों की तरह समाज के पैसे से बीयर बार में जाकर रंगरेलियां नहीं मनाता, न मैं 10 हज़ार के जूते पहनने का शौक़ीन हूँ और न मैं नेपाल और थाईलैंड जाकर अय्याशी करने वालों में से हूँ। मैं 15 लाख की गाड़ी में सफर करने और महंगे पांच सितारा होटलों में आये दिन चुपके-चुपके दावत उड़ाने और अपने वार्षिकोत्सव मनाने के नाम पर हज़ार पांच सौ लोगो को बिरयानी बंटवाने वाला भी नहीं हूँ। मैं पैखाने के पास बदबू सूंघते हुए दिल्ली आने जाने वालो में से हूँ। मैं दलदली कीचड़ और बजबजाती नालियों में उतर कर नशे से बेहोश पड़े बच्चों को कन्धे पर ढो कर बाहर लाने वाला इंसान हूँ। झुग्गी झोपड़ी में उन लोगों के बीच बैठ कर अपना काम करने वाला समाजसेवी हूँ जिनको ज़माना आज भी अछूत समझता है। 50 रूपये के लिए अपना जिस्म बेच देने वाली कुंवारी माँओं को स्वावलम्बी और स्वाभिमानी कैसे बनाया है मैंने ये कोई मुझसे आकर पूछे।🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴

05 या 07 मिनट की वीडियो क्लिप चलाकर और सनसनीखेज खबर के नाम पर साज़िश करने वालों से पैसे खाकर समाचार चलाना आसान है। लेकिन मेहनत करके लोगों का भरोसा जीतना और इज्जत कमाना बहुत कठिन है। सर्दी, गर्मी बरसात या आंधी हर मौसम में रोज़ सड़क पर घूम घूम कर मेहनत करना और सड़क के किनारे पल बढ़ रहे बच्चों को मुख्यधारा में लाना कितना कठिन काम है यह आप जैसे पाव भर का कैमरा और माइक ढोने वाले और सच्चाई की बजाय अनैतिक पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों को भला कैसे समझ में आएगा?मैं नंगा फकीर और रजिस्टर्ड भिखारी हूँ। मैं ऐसे छोटे मोटे इल्जामों से नहीं डरता। कल फिर सुबह अपना काम जारी रहेगा। बच्चों को पढ़ाना, उन्हें भिक्षाटन से दूर करना और उनके सुखमय जीवन के लिए खुद समाज से भीख मांगना शुरू रहेगा। हाँ तुम्हारे इस काम से मेरे दुश्मनो को थोड़ी ताकत ज़रूर मिली होगी अन्यायी पत्रकार महोदय लेकिन इतना बताना चाहता हूँ मेरे पास एक एक नए पैसे का पूरा हिसाब है और मेरा जीवन खुली किताब है और आपके इस गन्दे कारनामे के लिए मैं आपको धिक्कारता हूँ।🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴

इतना ही नहीं स्माइल रोटी बैंक के फाउंडर आजाद पांडे ने स्पष्ट तौर पर उस पत्रकार से काफी नाखुश दिखे और जिसका जिक्र उन्होंने अपने ऊपर के लेख में किया इतना ही नहीं उन्होंने यहां तक लिखा की जरूरत पड़ी तो वे अदालत के दरवाजे तक भी जाएंगे लेकिन अपनी ज़मीर से समझौता नहीं करेंगे। आगे आजाद पांडे ने लिखा कि  'आदरणीय अन्यायी पत्रकार महोदय आपसे मुलाक़ात और आपके सवालों का जवाब मैं समाज के सामने विधिवत दूंगा। मैंने सारे सबूत इकट्ठा कर लिए हैं और मेरे साथियों की मदद से मैं आपसे बहुत जल्द ही कचहरी में अदालत के सामने मुलाक़ात करूंगा। उम्मीद है आप भी पूरी तैयारी के साथ आयेंगें।'

आज़ाद पाण्डेय
अक्षम बचपनी उम्मीदों का साथी
📲 +919454641501


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NTC CLUB MEDIA

 Nakul Kumar 8083686563

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Comments

Unknown said…
SATYA PARESAN HO SAKTA HAI PARAJIT NAHI
Azad ke karwa ke aage sab natmastak ho jayenge.
sahwes said…
बोलूंगा प्रमाण और कुछ स्क्रीन शाट के साथ तो हल्ला मच जाएगा.

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जब कलेक्टर के साथ स्कूल पहुँची खुशी... पढ़िए रितु साहू की रिपोर्ट

जेल में 6 साल से बेगुनाही की सजा काट रही खुशी का हुआ इंटरनेशनल स्कूल में एडमिशन, कलेक्टर के साथ स्कूल पहुँची खुशी बिलासपुर (छग) जब एक पिता अपनी बेटी को खुद से विदा करता है तब दोनों तरफ से सिर्फ आंसू ही बहते हैं। आज बिलासपुर केंद्रीय जेल में ऐसा ही नजारा देखने को मिला। जेल में बंद एक सजायफ्ता कैदी अपनी 6 साल की बेटी खुशी( बदला हुआ नाम) से लिपटकर खूब रोया। वजह बेहद खास थी। आज से उसकी बेटी जेल की सलाखों के बजाय बड़े स्कूल के हॉस्टल में रहने जा रही थी। करीब एक माह पहले जेल निरीक्षण के दौरान कलेक्टर डॉ संजय अलंग की नजर महिला कैदियों के साथ बैठी खुशी पर गयी थी। तभी वे उससे वादा करके आये थे कि उसका दाखिला किसी बड़े स्कूल में करायेंगे। आज कलेक्टर डॉ संजय अलंग खुशी को अपनी कार में बैठाकर केंद्रीय जेल से स्कूल तक खुद छोड़ने गये। कार से उतरकर खुशी एकटक स्कूल को देखती रही। खुशी कलेक्टर की उंगली पकड़कर स्कूल के अंदर तक गयी। एक हाथ में बिस्किट और दूसरे में चॉकलेट लिये वह स्कूल जाने के लिये सुबह से ही तैयार हो गयी थी। आमतौर पर स्कूल जाने के पहले दिन बच्चे रोते हैं। लेकिन खुशी आज बेहद खुश

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छत्तीसगढ़। इस देश में हर वर्ग के हिसाब से हर इंसान की हैसियत के हिसाब से और हर इंसान की चॉइस के हिसाब से हर किसी का अपना एक डॉक्टर होता है।उच्च श्रेणी के उच्च वर्ग वाले लोगों के फैमिली डॉक्टर होते हैं। मध्यमवर्ग वालों के लिए चैरिटेबल, सरकारी या थोड़े से सस्ते वाले डॉक्टर होते हैं। गांव में पाए जाने वाले कंधे पर झोला टांग कर घूमने वाले भी देशी डॉक्टर होते हैं। जो किसी डॉक्टर के पास इंजेक्शन लगाने गोलियां दवाइयां देने का काम सीख कर गांव वालों की सेवाएं करते हैं। अब गांव वालों के लिए तो वह भी भगवान से कम नहीं है, जो मौके पर उनके कष्ट का निवारण कर उन्हें दर्द से निजात दिलवा देते हैं। साईकल पर गली में खड़े खड़े ही मरीजों की ओ पी डी से लेकर एम आर आई तक करने वाले गांव के डॉक्टर जब किसी मरीज को देखते हैं, तो मरीज उन से तरह-तरह के सवाल और अपने दर्द के बारे में तलब करते हैं। सिर में दर्द है,पीठ में दर्द है,कमर में दर्द है यह दवाई ले लो। क्या इससे काम चल जाएगा....? चिंता मत करो सारी बिमारीयों काम तमाम करेगी। इस तरह से बिना बेड पर लेटा कर इलाज कर देने वाले, मौके पर काम आने वाले इन झोला टां

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ थीम पर संपन्‍न हुआ न्‍यू बूगी - बूगी ऐकेडमी का वार्षिकोत्‍सव

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