-:भजन:-
ममता भटक रही हर बार।
अरे मैं कैसे करूँ पुकार ।।
1
मन भी मैला तन भी मैला,
मुखसे निकले झाग बिषैला,
चिंतन धारा जुड़ न पाये,
जोड़ूँ बारम्बार---अरे् मैं----
2
श्रद्धा क्षमता घटी नही है,
आराधन से दुखी नही है,
पर लौकिकता बोध न पाती,
बैभव भरा दुवार--अरे मैं---
3
संसाधन मेंं बढी़ चपलता,
बिषय वासना रथ पे चलता,
फँसी इन्द्रियां सम्मोहन से,
आकुल भाव विचार-अरे मैं--
4
मैं भी तेरा तू भी मेरा,
जीवन है एक रैन बसेरा,
बदली राग विराग से रशमी,
यौवन बना कुदार--अरे मैं--
5
अन्दर मेरे मैल भरा है ,
ऊपर मेरा रूप सजा है ,
ज्ञान चक्षु भी द्वंद करत हैं ,
करके बन्द किवॉंर--अरेमैं--
6
काम क्रोध की बहती धारा,
लोभ - मोह ने उसे सचारा ,
मद में ढूबा पाल हमारा,
छाया है अंधियार --अरे मैं--
7
जीवन को बिषयों ने घेरा,
यमदूत लगावैं जब तब फेरा,
माया फाँसे अपने चक्कर,
ना देती छुटकार --अरे मैं---
8
बडी़ बिषमता भौतिक युगमें,
साथी नहीं है कोई दुख में,
दुर्योधन की मनो कामना,
घुटके भइयाचार--अरे मैं---
9
हे मन मोहन जग आधार,
नीचे जल बना चक्राकार,
डोल रही है'भ्रमर'की नइया,
छूट गयी पतवार --अरे मैं--
रचयिता प्रेषक:--
'भ्रमर' RBL 10 Jul 18
Comments