दोहा:---
अक्सर बुझता तेल बिन,
दीपक अपने आप।
फिर भी कारण भौतिकी,
वायु को दे संताप।।
मुक्तक:--
1
दीप कणिका कह रही थी,
सुन बटोही ध्यान से,
धर्म का बैभव सदा सोता,
कहॉं सम्मान से,
वो 'भ्रमर' चाहे अगर तो,
रस जलधि में ढूब कर,
देख ले मन की दशा,
क्यूँ दूर है कल्यान से।।
2
धर्म तो धर्मान्ध है पर ,
मन का वो काला नही,
बढ़ गये हों यदि कदम ,
तो रोकने वाला नही,
वो 'भ्रमर' स्नेह का प्यासा,
दिखे तो सोंच लो,
मर्म की मोहक किरन को,
शोधने वाला नही।।
'भ्रमर 'रायबरेली 4जुलाई 18
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