लेकिन मेरे अपनों ने...
इरादतन नहीं तोड़ा ये जानता हूँ मैं
लेकिन मेरे अपनों ने मुझे तोड़ा भी बहुत है.
तोड़ा भी बहुत है...
लेकिन मेरे अपनो नें...
चलता रहा मैं धूप में संग संग जिनके
रास्तों में तनहा अपनों ने छोड़ा भी बहुत है.
छोड़ा भी बहुत है...
लेकिन मेरे अपनो ने...
जलता रहा मैं रात भर रौशनी के लिए
अंधेरी रातों को चरागों ने जोड़ा भी बहुत है.
जोड़ा भी बहुत है...
लेकिन मेरे अपनो ने...
कबका चला मैं जाता दुनिया से दोस्तो
दुआओं ने तुम्हारी मुझको मोड़ा भी बहुत है.
मोड़ा भी बहुत है...
लेकिन मेरे अपनो ने...
अहसां से दब गया है धरम ज़िंदगी मेरी
ज़्यादा सिखाया तूने पर थोड़ा भी बहुत है
थोड़ा भी बहुत है....
लेकिन मेरे अपनो ने...
हिलोर मेरे मन की : धर्मेन्द्र: उकर गया, बिखर गया एक पन्ने पर जो भी गुज़रा अभी हाल.
Jgd
जयहिन्द
सत्यमेव जयते
7860501111
Dharmendra KR Singh
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